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________________ A सथापि सोऽधिपः सेकात् स्निग्धमूलो न पुष्यते / प्रायशः सुमना नैव जहात्मा स्नेहतो भवेत् // 334 // ततोऽतिरोषतस्तना-ऽधस्तात् प्रज्वलितः शिखी। तबशाद्रूक्षतां प्राप्यस शाखी पुष्पितों द्रुतम् // 35 // 4 एवं पथ्यमपि प्रोक्ता यथेषा न निवर्तते / असद्ग्रहात् ततः पथ्यं स्वस्य कार्य किमेतया ? - // 336 // किंच-यः स्वस्य कुरुते पथ्यं परैरपि स पूज्यते / यथेह ब्रह्मदत्तेन वस्तः कनकमालया // 337 // वरारोहोऽभ्यधास्कोऽयं ब्रह्मदत्तोऽभिधीयतां / स प्राहाऽऽकर्णयकामा यदि तेऽस्ति कुतूहलम् // 338 // पश्चालदेशमध्यस्थः काम्पिल्यनगराश्रयः / श्रीब्रह्मदत्तनामाऽसीद् भारतक्षेत्रनायकः // 339 // सोऽन्यदाऽऽरुह्य चार्वश्वं प्राभृतागतमुखहन् / निर्ययावन्वितो भूपै-रश्ववाहनिको प्रति // 340 // ततोऽज्ञातस्वभावत्वाद् दुन्तित्वाच भूपतिः। अश्वेनाऽऽनीयत वेगाद् अव्याहृत्य महाटवीम् // 341 // आगत्य पृष्ठतः सैन्यैरानीतः स्वं पुरं पुनः / ततो देव्या रजन्यां स पपृच्छे शयनस्थितः / / 342 // राजन् अश्वहृतेरद्य किं दृष्टं किंचिद्भुतम् / भवद्भिरटवीमध्ये किं वा नेति निवेद्यताम् // 343 // तेनोचे दर्शि साऽवोचत् किं तेनोक्तं निशम्यताम् / अद्यातो देव्यहं नीतो दुष्टाश्वेन महाटवीम् // 2444 यस्यां हि-क्वचिद्गुञ्जन्ति जन्तुकर्णकोटरपाटनपटुना निनादेन तरलतरलागूलतलदलितभूतला हरिणाऽधिपतयः, क्वचिद् गर्जन्ति जर्जरिततरमतियहलमदजलमलिनकपोलतलाः करिनिकराः, क्वचिद्युध्यन्ते परस्पर नगराश्रयः / श्रीस माहाऽऽकर्णका कनकमालया। AAAAE% Aमान
SR No.600401
Book TitleManipati Rajarshi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambukavi, Bhagwandas Pt
PublisherHemchandra Granthmala
Publication Year1922
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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