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________________ AAAAAAAAAड Ka: श्रेणिकराज्ञाऽसौ दिव्यहारोऽन्यदा ददे / चेल्लनायै महादेव्यै स्नेहोत्कर्षपुरस्सरम् // 308 // कीटागोलकयुग्मं च भ्राजमान स्वतेजसा। दिव्यं देव्यै द्वितीयस्यै नन्दाख्याय व्यतीर्यत // 309 // तद्गृहीत्वा या सेज्य किमु योग्याशः / दानस्येति वदन्याऽग्रे स्तम्भे प्रस्फोटितं रुषा // 310 ततो निर्यातमेकस्माद् दिव्यं कुण्डलयोयं / जोमयुग्मं द्वितीयात्तु महर्ष पयत्तत्तत् // 11 // सभिरीक्ष्याऽमरं क्षौम-कुण्डलद्वितयं वरं / बनाये गा देवी भूपैतन् मम दीयताम् // 32 राज्ञोक्तं देवि ! यत्सारं तत्तेदायि मया किल / यत्तु बालोचितं वस्तु नन्दायै तदवज्ञया // 13 // सन युक्तं तवेक्ष-मपि चिन्तयितुं मिये ! / किमु वक्तुं विरुहार्थ ? न वदन्ति हि सद्गुणाः॥३१४॥ चेल्लणा प्राह सासूयं किमेभिधूतभाषितैः। यद्येतन्मे न दास्ये त्वं ततोऽवश्यमहं म्रिये // 15 // ताछुत्वा भूभुजामर्षा-दभ्यधायि मनस्विनि ! / यत्तुभ्यं रोचते किञ्चित् तदहाय विधीयताम् // 316 // ततोऽतिकोपवेगेन वेपमानपयोघरा / देव्युत्थायाऽऽरुरोहोचैः प्रासादस्य गवाक्षकम् // 317 // क्षिपाम्याऽऽत्मानमित्येव-मध्यवस्य निरीक्षितम्। अधस्ताद् भूतलं यावत् तावत् तत्र व्यलोकयत्॥१८॥ मिण्ठं तथा वरारोहं मन्त्रयन्तं शनैः शनैः / महासेनाख्यया साध वेश्ययाऽऽकु नेतसा // 19 // तभिरीक्ष्य तयाऽचिन्ति किमेतान्यत्र सांप्रतं ? / मन्त्रयन्त्यथवा ताव-च्छृणोम्यालापमादात् // 320 //
SR No.600401
Book TitleManipati Rajarshi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambukavi, Bhagwandas Pt
PublisherHemchandra Granthmala
Publication Year1922
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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