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________________ मणिपति // 16 // RECASIA तस्यापि रूपसौन्दर्य-युक्त भार्ये बभूवतुः। वर्ये वर्यकुलोत्पन्नसुनन्दा-चेल्लणाभिधे // 295 // नन्दायास्तत्र पुत्रोऽभूद् यथार्थाऽऽख्योऽभयः सुधीः। ज्ञात्वा तदाक्ष्यमीशेन स चक्रे सचिवाऽग्रणीः॥२९६॥ अथाऽन्यदा महावीर-स्तत्रैत्य समवासरत् / ज्ञातप्रवृत्तिर्वीशो वन्दनार्थ जगाम च // 297H // अभिवन्य भावतस्तं निषसादाऽवनीश्वरः। संसारसागरतरी-मश्रौषीद्धर्मदेशनाम् // 298 // एका कुष्ठी तदा स्वामि-पादौ देहरसेन हि / व्यलिम्पत् मुहुरत्यर्थ पश्यतोऽपि क्षमा भुजः॥ 299 // तथा क्षुते जिनेनौचै-म्रियस्वेत्यवदत्ततः / रुष्टेन राज्ञा वध्यश्चा-ऽऽदिष्टो व्योमोत्पपात सः॥३०॥ तचरित्रं ततः पृष्टो राज्ञाऽवोचन्जिनेश्वरो। ददुराकस्य देवस्य कथां तत्र सविस्तराम् // 301 // नत्वा प्रभुं निवृत्तः सन् श्रेणिकोऽदृशदध्वनि / सत्साधुं धीवराऽऽकारं साध्वीमुदरिणी पुनः / / 302 // तथापि जिनधर्मात्स यकम्पितमना नृपः / प्रत्यक्षाभूय देवेन ददुराकेन तुष्टुवे // 303 / / धन्यस्त्वं यो मघोनाऽपि श्लाधितः सुरपर्षदि / बहुधार्मिकघरिच्या-मनुश्रेणिकमाहताः / 304 // अतोऽहं त्वत्परीक्षार्थ-मागत्य कृतवानिदं / धर्म स्थैर्यातिमेरुस्त्वं युक्तमुक्तोऽसि भूपते // 305 // इत्युक्त्वाऽष्टादशवक्र-हारं वै गोलके तथा / समर्प्य श्रेणिकायाऽथो-वाचं वाचमिमा पुनः // 306 // योऽमुं संधास्यते.हारं त्रुटितं स मरिष्यते / इत्युदोर्य तिरोऽधत्त-स्वप्नदृष्ट इवाऽमरः // 307 //
SR No.600401
Book TitleManipati Rajarshi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambukavi, Bhagwandas Pt
PublisherHemchandra Granthmala
Publication Year1922
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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