SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मणिपति // 10 यतो या प्रेयसी यस्य तस्य सैवेह सुन्दरी / मूलदेव इति प्रोचे पिशाचाभ्यां धृतः पथि // 204 // प्रहृष्टौ तौ तदाऽऽकर्ण्यप्रशस्यं च वचो भृशं / पिशाचौ मूलदेवश्च स्वं स्वं प्रययतुहम् // 205 // परित्रम. इति बुद्ध्या यथा तेन तोषितो तो पिशाचको / तथैतावहमप्युच्चैस्तोषयिष्ये निराकुलः // 206 // मणिपते:एवं संचिन्त्य मार्जारः प्राह तो पौष-माघयोः / यदैव मारुतो वाति शिशिरं स्यात्तदैव भोः ? // 207 // श्मशाने रात्रौध्यान एवं न कस्यचिद् भद्रो विद्यते वा पराजयः। तुल्यपक्षतया यस्मा-दत्तो यात युवां गृहम् // 208 / / प्रतिपतिः. इत्युक्तौ तस्य तद्वाक्यं पक्षपातविवर्जितम् / प्रशस्य जग्मतुर्गेहं मुदितेनाऽन्तरात्मना // 209 // पशूनामपि यत्राऽऽसीत् काले जल्पः किलेशः / तत्राऽसौ विहरन् साधु-रूजयिन्यां समागमत् // 21 // तस्या बहिर्महाकालं कालवेश्मेव भीषणम् / श्मशानं भूतसंघात-प्तिमस्ति समन्ततः // 211 // तस्मिंश्चासौ महातेजाः प्रतिमामेकरात्रिकीम् / सन्ध्यायां ध्यानमार्य प्रतिपेदे स्थिराशयः // 212 // अत्रान्तरे पुरी गोपैः प्रविशद्भिर्महातपाः। ददृशे दर्शनेनैव क्षालयन् प्राणिनामघम् // 213 // तं दृष्ट्वैवं जजल्पुस्ते क्रियायुक्ताः परस्परम् / शर्वयों काष्ठकल्पः स्या-च्छीतेनैष महामुनिः॥२१४ // अतो वस्त्रैः स्वकरेनं वेष्टयानोऽधुनाऽधिकम् / प्रातरागत्य लास्यामो निजवस्त्राणि सत्वरम् // 215 // // 10 // दान-शीलादिशून्यानां पशुनामिव सर्वदा / एतावताऽपि नस्तावद् धर्मों भवतु सांप्रतम् // 216 // A% AEOCT
SR No.600401
Book TitleManipati Rajarshi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambukavi, Bhagwandas Pt
PublisherHemchandra Granthmala
Publication Year1922
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy