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________________ मणिपति-४ तं दृष्ट्वा हा !! हताऽस्मीति बाप्पाम्बुप्लावितेक्षणाक्षणान् मूछी जगामासौ घ्नन्तीं वक्षःस्थली निजाम्॥ चरित्रम्. हा देव ! किमिदं पाप-मारग्धं कुर्वतेदृशम् / मया साधं तु किं तेऽस्ति विरोधः कश्चिदुच्यताम् // 1219 इति मूर्छावशेनालं विललापाऽश्रुगर्भिणी / विभ्रती लोचने भूयो मन्युसंस्तम्भगद्गदम् // 1220 // नागदत्तअथ देवाद् गतं चक्षु- गदत्तस्य गच्छतः / अवस्था तादृशीं प्राप्तां तां प्रति प्रियदर्शनाम् // 1221 // तां विलोक्य मनागा-हृयोऽसौ व्यचिन्तयत् / मदर्थ पश्य कीदृक्षां दशामनुभवत्यसौ // 1222 // अवश्यं यघतो दैवा-दापदो मे भविष्यति / मुक्तिर्मनोरथान स्याः पूरयिष्ये ततोऽधिकम् // 1223 // इति संकल्पयन्नेव निन्येऽसौ बध्यभूमिकाम् / शोकोत्पन्नाऽश्रुपूर्णाऽ:-क्ष्यमाणो जनमुंहः // 1224 // तत्राऽसौ तैः स्मरेदानों पापात्मन् ! इष्टदेवताम् / इत्युक्तो ददत्सिद्धानां सम्यगाऽऽलोचना क्षणात् // साकारं जगृहे चाय प्रत्याख्यानं विशुद्धधीः / अन्यजन्मकृतं भुक्ष्व कर्म जीवेति चिन्तयन् // 1226 / / साऽपि नागबसष्टवा नीतं तं वध्यभूमिकाम् / जगाम धैर्यमालम्ब्य गृहदेवालयं द्रुतम् // 1227 // तत्रार्चापूर्वकं तस्थौ कायोत्सर्गेण धीमती / साध परिजनैनाऽसौ भाषमाणेशं वचः // 1228 // सत्यं प्रवचने जैने चेद् भक्तानां चिकीर्षसि / किञ्चित्वंतसिसानाध्यं तवाऽयं देवि स क्षणः ॥१२२९॥ठा प्रसीद मोचयेदानी नागदत्तं महापदः / अहमाराधनायैषा कायोत्सर्गे तव स्थिता // 1230 //
SR No.600401
Book TitleManipati Rajarshi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambukavi, Bhagwandas Pt
PublisherHemchandra Granthmala
Publication Year1922
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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