________________ // 369 // सुकुमारिका | निदान स्वरूपम् | भवच्छमितिकृत्तनुः॥६३॥ दध्यौ च धिक् कथं ? तन्वा नाना च सुकुमारिका / स्पर्शेग्निकारिकेवाज्यं ज्वलन्त्यङ्गं दहत्यसौ // 6 // स्पर्श सहिष्ये चेद् धैर्यात्क्षणमस्यास्ततो ध्रुवम् / नवनीतविलायं मे कायः सर्वो विलास्यते // 65 / / इत्यातङ्कात् स उत्थाय विधृतोऽपि करैस्तया / बलादाच्छेद्य निर्गत्य स्वं वेपं परिधाय च // 66 // संत्यज्य श्रेष्टिवस्त्राणि धार्यमाणोऽपि यामिकैः। तथाऽनेशद्यथा नेशः कोप्यासीत्तद्भहे हठात् // 67 / / त्रि० वि०॥ विषीदन्ती सुता प्रोचे पित्रा प्राग्भवकर्मणाम् / उदियाय विपाकोऽयं सह्यस्तद्धीरया त्वया / // 68 // देयं दानं विधेयं च ध्यानं धर्म तपोऽपि च / भावेन घात्यं दुःकर्म तिष्ठन्त्या मद्गृहे सुखम् // 69 // तस्यास्तत्रेति समयं गमयन्त्याः कदाचन / आर्या गोपालिका इत्याजग्मुर्वेश्मनि भिक्षितुम् // 70 // शुद्धभक्तादिभिस्ताश्च प्रतिलम्भ्याथ तन्मुखात् / धर्म | श्रुत्वाऽऽश्रये बुद्धा वैराग्यात्पित्रनुज्ञया // 71 // तत्पावे साऽग्रहीद्दीक्षामन्यत्रार्यायुता भुवि / व्यहार्षीत्कुर्वती षष्टाष्ठमाद्यं नित्यशस्तपः॥७२॥ युग्मम् / / साऽप्राक्षीदेकदाऽऽर्यास्ताः सूर्य न्यस्तविलोचना / (सु)भूमिभागोद्यानेऽहं करोम्यातापनाविधिम् / / 73 / / आर्याभिरूचे साध्वीनां निषिद्धा वसतेबहिः / आतापना जिनस्ता यद्रक्ष्याः श्रीगृहवत्सदा // 74aa इत्यार्यादेशमश्रुखैवागत्योद्यानभूमिकाम् / आतापनां समारेभे सैकापि सुकुमारिका // 7 // युग्मम् // अथैकेन धृतच्छत्रां परेणाङ्के निवेशिताम् / तदन्येन वीज्यमानां यूना व्यजनमारुतैः // 76 // अथ्यमानवेणिमेकेनैकेनाङ्के धृतक्रमाम् / वेश्यामपश्यत्सा देवदत्तां तत्रागतां तदा // 77 / / युग्मम् / / अप्राप्तभोगसौख्या सा निदानमिति निर्ममे / स्यां पञ्चपतिकाऽनेन तपसाऽहमसाविव / / 78 // चक्रेऽङ्गवस्त्रशौचं साऽभ्युक्षणं च पदे पदे / वार्यमाणा च साध्वीभिरध्यासीदिति मानसे // 79 // ग्रहे स्थिताहमार्याणां गौरव्याऽऽसं धनेश्वरी / तुदन्ति साम्प्रतं भिक्षाचरी शिक्षामिषात्तु माम् // 80 // अदृष्टश्वभूननान्डस्थितेमध्येधु-| // 369 //