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________________ श्रीअमम जिनेशचरित्रम् / श्रेष्टिपुत्रेण त्यक्ता // 368 // सार्थपतिहम् / गत्वाऽपृच्छत्सुतं सोऽपि मौनात्तत्स्वीकृति जगौ // 45 // सार्थेशोऽप्रतिषिद्धं तन्मत्वाऽस्यानुमतं हृदि / गृहजामातरं | मेने श्रेष्ठिनोऽग्रे निज सुतम् // 46 // ताभ्यां धनिभ्यां चक्रेऽथोद्वाहः सागरकन्ययोः / मुदाऽनल्पं श्रितौ तल्पं रात्रौ वासगृहे च तौ // 47 // प्राकमोदितदौर्भाग्यात्सुकुमार्यास्तनोस्तदा। दावज्वालाप्रशम्पोल्कासन्तापादपि दुःसहः // 48 // स्पर्शोऽभूत्तेन दंदह्यमानः | कुच्छ्रेण सागरः। तत्र तस्थौ क्षणं सुप्तां तां मुक्त्वाऽगानिजे गृहे // 49 // युग्मम् / / क्षणाज्जागरिता साऽप्यप्रेक्ष्य तं पतिमात्मनः।। | निनाय रुदितोच्छ्रननेत्रा रात्रि कथञ्चन // 50 // प्रातर्वधूवरस्याथ दन्तशौचार्थमागता / चेटी सुभद्रयादिष्टा रुदन्तीमेकका सुताम् // 51 // वीक्ष्याचख्यौ पुरो मातुः साऽपि भर्तुरसावपि / अदत्त जिनदत्तस्य गोपालम्भमात्मनः // 52 // युग्मम् / / विजने जिनद| तोऽपि पुत्रमूचे मृदु त्वया / अत्याजि स्वयमादृत्य किं नाम स्वजनात्मजा // 53 / / वत्स! श्रेष्टिगृहे गच्छ तत्सम्प्रत्यपि तां श्रय / | त्वया मदग्रेऽङ्गीचक्रे सज्जनाग्रे मया त्वदः // 54 // सागरो व्याहरद्वहौ प्रवेक्ष्यामि सुखं पितः। पार्श्वे श्रेष्ठिसुतायास्तु दुःस्पर्शायास्ततोऽपि न // 55 / / तत्कुड्यान्तरितः सर्व शुश्राव श्रेष्ठ्यपि स्वयम् / जामातुराशां त्यक्त्वाऽगागृहं पुत्रीमुवाच च // 56 / / विरक्तस्त्वयि सार्थेशपुत्रस्तेऽन्यं पति ततः / करिष्येऽन्विष्य वत्से ! तन्मा स्म व खिद्यथा वृथा // 57 / / दौर्भाग्योदयतः पुत्र्याः कुलिनं विमुखं नरम्। निश्चित्यावस्तुभूतं सोऽशोधयत् पुरुषैः परम् // 58 // सोऽन्येाः कर्परधरं जीर्णशीर्णाम्बरं स्वयम् / मक्षिकावृतमद्राक्षीद् भिक्षाकं सौधमृर्द्धगः // 59 / / तेनाकार्य कर्परादि मोचयित्वा स कोणके / संस्नप्य भोजयित्वा च चन्दनेनानुलिप्य च // 60 // अभाणि वत्स पुत्रीय मया तेऽदायि तत्सुखम् / क्रीडेस्त्वमनया साई देववत्पूर्णवाञ्छितः // 6 // युग्मम् // श्रुत्वेति हृष्टः स ययौ निशि वासौकसि स्वयम् / पल्यझं शिश्रिये क्षौमप्रच्छदं चम्पकैश्चितम् // 62 // तत्र स्पृष्टः श्रेष्ठिपुच्या स्नेहपाच्या स पूपवत् / तपन्त्या तापिकयेबाऽ मा त्यक्त्वाऽगागुहं पुत्रायाः कुलिनं विमुख सोध सर्ग-९ // 368 //
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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