________________ // 36 // मधुकैटभस्वरूपम् जनि // 12 // ततच्युतोऽयं चंडालो जज्ञेऽभूद्रुक्मिणी पुनः। भ्रान्त्वा भवे शुनकीयं प्रीतिर्वामेतयोस्ततः॥१३॥ पूर्णभद्रमाणिभद्रौ श्रुत्वा पित्रोर्भवानिति / चंडालशुनिके योधं जातीः संस्मार्य निन्यतुः // 14 // वैराग्येण ततो मासं चण्डालोऽनशनं श्रितः। मृतश्च जज्ञिवान्नन्दीश्वरद्वीपे वरः सुरः॥१५॥ बोधाद्विधायानशनं शुनक्यापि समाधिना / मृता शङ्खपुरे राज्ञः पुत्री जज्ञे सुदर्शना // 16 // अर्हद्दाससुतौ भूयोऽभ्यागतं तं मुनीश्वरम् / पप्रच्छतुः शुनीचण्डालयोगतिमथादृतौ // 17 // ताभ्यां प्रबोधिता भूयोऽप्यथ सा राजनन्दना / गृहीत्वा संयम प्रापदेवलोकं समाधिना // 18 // पूर्णभद्रमाणिभद्रावपि श्रावकतां शुभाम् / धृत्वा मृत्वाऽऽदिमे कल्पे जातो सामानिकामरौ // 19 / / प्रच्युतौ हास्तिने पुरे विश्वक्सेनक्षमापतेः / जज्ञाते नन्दनौ नाम्ना तावुभौ मधुकैटभौ // 20 // च्युत्वा नन्दीश्वरसुरोप्यथ संसृत्य संसृतौ / राजा वटपुरे जज्ञे सप्रभः कनकप्रभः // 21 // सुदर्शनाऽपि प्रच्युत्य स्वर्गाद् भ्रान्वा भवं भृशम् / चन्द्राभेत्यभवद्राज्ञी कनकप्रभभूपतेः // 22 // क्रमाद्राज्ये यौवराज्ये निधाय मधुकैटभौ। विष्वक्सेननृपः प्राप स्वर्गमादाय संयमम् | Hom२३|मधुकैटभयोर्मत्तेभयोर्वशयतो वम् / देशं श्वेवोपदुद्राव भीमः पल्लीपतिच्छलात् // 24 // मधुस्तं प्रस्थितो हन्तुं प्राप्तो बटपुरे पथि / कनकप्रभभूपेनाभ्यचिंतो भोजनादिना // 25 // मधोः स सेवक इव भक्त्या सप्राभृतो ययौ / मध्याह्नेऽवलगाहेतोः पत्न्या चन्द्रा* भया सह / / 26 // चन्द्रामा मधुमानम्य ययावन्तःपुरे निजे / जिघृक्षति स्म कामान्धस्तां तदैव हठादसौ // 27 // मधुर्मत्रिनिषिद्धोऽग्रे| गत्वा भीमं विजित्य च / वलितः पुनरानचि कनकप्रभभूभुजा // 28 // मधुना याचिते तस्मिंश्चन्द्राभामप्रयच्छति / बलात्काराद् | गृहीबाशु जग्मे श्रीहास्तिने पुरे // 29 // चन्द्राभाविरहान्मूच्छौँ वैकल्यं चासदत् क्षणात् / तन्वा चकोरवच्चाभून्निप्रभः कनकप्रभः | // 30 // पृष्टश्चन्द्राभयाऽन्येधुर्मधुरुत्सूरकारणम् / पारदारिकवादेन स्थितोऽस्मीति शशंस सः // 31 // चन्द्राभा स्माह वादः कः पूज्या | // 36 //