________________ श्रीअमम जिनेशचरित्रम् / अग्निभूतिप्रभृति भवस्वरूपम् // 360 // | हालिको मुनिम् / आख्यल्लोकेषु शृण्वत्सु तथैव प्राग्भवं निजम् // 94 // स हालिको जनाश्चान्ये वैराग्यात्प्रावजन् घनाः। विलक्षौ | |हसितौ तौ तु लोकैः प्राप्तौ द्विजौ गृहम् // 95 // बद्धवैरौ सखड्गौ तौ जिघांसन्तौ च तं मुनिम् / प्राप्तौ निशायामस्तंभीद्यक्षोऽथ सुमनाः स्वयम् // 96 / / क्रन्दन्तौ तौ प्रगे लोकैस्तत्पितृभ्यां च वीक्षितौ / तेषां समक्षं यक्षश्च साक्षाद्भूयेदमभ्यधात् / / 97 // मुनिघातोद्यतौ | दुष्टौ मयैवं शिक्षिताविमौ / साधोः शिप्यौ यदि स्यातां ततो मुश्चेऽन्यथा तु न // 98 // आवां नालं सुनेधर्मे श्राधर्मे स्थितौ पुनः। मुनेः शिष्यौ भविष्यायो जल्पन्ताविति तो द्विजौ // 19 // यक्षमुक्तौ मुनेः पार्श्वे श्राद्धधर्म जिनोदितम् / स्वीकृत्य चक्रतुर्भक्त्या तो तदादि मदोज्झितौ // 20 // युग्मम् // अग्निला सोमदेवौ तु मिथ्यात्वकलुषाशयौ। धर्म तत्पितरौ जैन यक्षोक्तावपि नेपतुः // 1 // | अग्निभृतिवायुभूती श्राद्धधर्म प्रपाल्य तौ / मृत्वाऽभृतां सुरावाद्ये कल्पे पट्पल्यजीवितौ / / 2 / / च्युतौ जातौ गजपुरेऽर्हद्दास श्रेष्ठिनन्दनौ / | पूर्णभद्रमाणिभद्रौ श्राद्धौ प्राग्जन्मसंस्कृतौ // 3 // अर्हद्दासो माहेन्द्रः प्रावाजीद् ज्ञानिनोऽन्तिके / पूर्णभद्रमाणिभद्रौ यान्तौ तं वन्दितुं पथि // 4 // चण्डालशुनिके दृष्ट्वा स्निह्यतः स्म भृशं हृदि / नत्वा महर्षि तत्महे स्वस्य हेतुमपृच्छताम् / / 5 / / युग्मम् // आख्यत्स शालिग्रामे प्राग् युवयोईग्रजन्मनि / सोमदेवोऽभवत्तातो जननीत्वग्निलाभिधा // 6 // सोमदेवो मृतः शंखपुरे भरतवत्तिनि / जितशत्रुरभूद्राजा परस्त्रीलोलमानसः / / 7 / / मृत्वाऽनिलाऽपि तत्राभृत्सोमभूतेर्द्विजन्मनः / रुक्मिणीति प्रिया राज्ञाऽन्येयुः साऽदर्शि | सौधगा / / 8 // कामातस्तां गृहीत्वाऽसौ हठादन्तःपुरेऽक्षिपत् / तद्वियोगाग्निमग्नोऽस्थाहुःखं विग्रस्तु तत्प्रियः // 9 // रत्वा वर्षसहस्रं | स रुक्मिण्या सह भृपतिः। विपद्य नरके जज्ञे पल्यत्रितयजीवितः // 10 // तदुवृत्तो मृगो भूत्वा मृत्वा व्याधहतोऽभवत् / मायावी | वणिजः सूनुस्ततोऽप्यजनि कुञ्जरः॥११॥ कर्मलाघवतो जाति स्मृत्वा सोऽनशनं व्यधात् / अष्टादशाहे सौधर्मे त्रिपल्यायुः सुरोऽ सर्ग-९ // 360||