SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ // 345 // | तिगं महः / त्वत्प्रभुस्तदमात्याश्च कस्मान्नैवं व्यचारयन् / / 81 // च० क०॥ अथोचे सोमकः क्रुद्धः खप्रभौ सेवकस्य ते / राजन् ! दृष्टा विशिष्टाऽद्य भक्तिरीदृक्षयुक्तिभिः // 82 // परमद्यावि मद्वाचं प्रपद्यतौ दूरतिरस्का नैमित्तिसमर्पय / बालौ बालाविव गले लग्नौ ते त्वतयेऽन्यथा // 83 // लोकाभिभावुकं तेजः पुत्रं कृष्णं च दर्शयन् / प्रभुं च भापयसे यच्च * कपृच्छनं च | तत्ते स्नेहान्मतिभ्रमः॥८४॥ युक्तस्तवासमर्थस्य स्वामिना बलिना सह / विरोधो नाधुना राजन् ! मृगस्येव मृगारिणा // 85 / ऊचे | कृष्णः कोपकृष्णतमास्यः प्रेम पुष्यतः / स वंश्यत्वेन तातस्य कुतस्त्यस्त्वत्प्रभुः प्रभुः // 86 // संधाऽस्ति जरया यस्य स्वमपि त्रातुमप्रभोः। रे दूत त्वत्प्रभोस्तस्य प्रत्युत प्रभवो वयम् // 87 // तद्गच्छ स्वेच्छया शंसेः प्रभोः कंसश्च चेत्प्रियः / तदेतु वेगाजामातुर्यनोत्कं मेलयाम्यमुम् // 88 // गच्छ रे मत्सरे मा स्मारोपयाऽस्मांस्त्वमातुरः। मा स्म भूः स्वप्रभोः प्रेतपुरीमागकदर्शकः // 89 // इत्थं निलों| ठितः शौर्यक्रतुपुंसा महौजसा / हरिणा कौतुकं सोमः क्रोधानलमलं वमन् // 10 // ऊचे समुद्रविजयं तव राज्यमहातरोः। कृष्णोऽय| मंगजः कीटः क्षयहेतुरजायत // 91 // तेन च निगृहीतेन पुनः कुशलमुज्वलम् / मत्वेति कुरु मद्वाचं मा मोपेक्षां वृथा कृथाः // 12 // | त्रि०वि०॥ तद्वाचाऽर्करुचेवांतभिन्नः स्फटिकवत्ततः / ज्वलत्कोपामिना स्वस्थोऽप्यनाधृष्टिरदोऽवदत् // 13 // लजसे रंकवद्याश्चादैन्यं | कुर्वन्न किं ? मुहुः / वैरं धत्ते स जामातुः षड्भ्रातृणां न किं वयम् ? // 14 // इतोऽपसर तत्तूण क्षमिष्यन्ते ऽन्यथा नहि / रामकृष्णा रमुख्या वीरास्त्वामितिवादिनम् // 15 // तेनेत्थं धर्षितो युद्धस्तोमसंदीक्षितेन च / उपेक्षितः समुद्रेणाप्यगात्सोमो यथागतम् // 16 // परेद्यवि दशार्हेशः पावे कृत्वाऽनुजान्निजान् / अप्राक्षीत् क्रोष्टुकिं नैमित्तिकं त्रैकाल्यवेदिनम् / / 97 // जरासंधेनोपतस्थे सार्द्धमद्याs // 345 // ईचक्रिणा / अस्माकं विग्रहस्तत्राख्याहि किं किं? भविष्यति // 98 // सोप्याचख्यौ जरासंधं निहत्य बलकेशवौ / त्रिखण्डभरतक्षेत्र
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy