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________________ श्रीअमम // 342 / / | च हत्वा सर्वस्वं रे मारयत पत्तयः / तद्द्यानपरांश्चास्य त्रायकांस्तुल्यदोपिणः // 24 // क्रोधात्तः सतडिन्मेघो ध्रुवं कृष्णोऽभवत्तदा / | यदृशोस्ताम्रता देहे कालिकाऽप्यभृशायत // 25 // ऊचे च कंस ! निस्तूंश ! ख चाणूरे हतेऽपि रे / मृतं मन्योऽसि नाद्यापि यत्त द्रष्टोऽसि कोपि रे // 26 // स्वमेव तावत्रायस्व मार्यमाण मयाऽधुना / नन्दादिष्वादिशेः पश्चान्मूख ! वामर्षसन्निभम् // 27 // इन्गु- क्वोत्पत्य तन्मंचमारुह्योचं नगेंद्रवत् / हरिगृहीत्वा केशेषु कसं मृगमिवाकुलम् / / 28 // पातयित्वा धरापीठे भ्रष्टालंकृतिवाससम् / अया ररतमित्यूचे शूनाबद्धमिव च्छगम् // 29 // युग्मम् / / भ्रूणहत्यापापवल्ली स्वं त्रातुं यामवीवृधः / इदानीं तत्फलं भुंव स्मरेष्टं | देवतं निजम् // 30 // व्यालमात्तरूपमिव धृतकंसं तदाऽच्युतम् / विलोकयन् जनश्चित्रमियाय च विभाय च // 31 // कृष्णे ऋद्धान्कं सपक्ष्यान् क्षमाभुजः सुभटानपि / मञ्चस्तम्भायुधबलादलो व्यदलयद् द्रुतम् // 32 // शिरस्युरसि च न्यस्य विष्णुस्तुल्यं पदद्वयम् / / | क्रोशन्तमजघातं तमवधीत्कंसमुद्धतः // 33 // रंगभूमेश्च चिक्षेप केशः कृष्वा स तं बहिः / काष्ठमावततोऽम्भोधिरिव कल्लोलवल्गितैः // 34 // याऽविभ्यताऽधिकं सेना कंसेनानायिता पुरा / जरासंधस्य सा रामहरी हन्तुमधावत / / 35 / / सन्नह्य वाहिनीं वेगात्तामायान्तीं | | महीपतिः। समुद्रो बहुलहरीभरणे शमानयत् // 36 // अनाधृष्टिरथे तेनारोप्य शाङ्गिबलावथ / वसुदेवगृहेऽनैषुः समुद्रविजयादयः // 37 // यदयोऽपि दवोद्दीप्रप्रतापास्तत्र जैत्रताम् / बन्दिभिघोषयन्तः स्वां दत्वाऽऽस्थानीमुपाविशन् // 38 // वलम सनेऽध्यास्य दन्दुरके तु शाङ्गिणम् / हर्षाश्रुपूरैः संस्नप्याऽचुम्बन्मृनि मुहुर्मुहुः // 39 // अथ पृष्टः समुद्राद्यैः किमेतदिति चाग्रजैः / देवक्युद्वाहतोऽशंसत् स वृत्तांतमशेषतः॥४०॥ समुद्रविजयः कृष्णं प्रीत्योत्संगे स्वयं दधौ / प्रशशंसच तद्रक्षाभिरामं राममुच्चकैः // 41 // देवक्यपि | तदाऽऽगत्य सह पुत्र्यैकनाशया / कृष्णं स्पृशन्ती प्रत्यंगं सखजेऽङ्के जयागतम् // 42 / / वसुदेवमयोचन्त बन्धवः प्रीतिसिन्धवः / एको जिनेशचरित्रम् / कंसवध निरुपणं दुन्दुना च कथितो वृत्तान्तो यदूनाम् सग-८ // 342 / /
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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