________________ // 341 // मल्लविना शे कंसकृतहननादेशः भ्यधावत // 4 // वाग्भिनिर्भत्स्य तेनापि युद्धायाह्वायि मुष्टिकः / स्वाधिक्षेपासहः सोऽपि बलस्याभिमुखोऽभवत् // 5 // स्थिरामप्य- स्थिरां पादन्यासैः कम्पितदिग्गजैः / कुर्वन्तोऽयुत्सतोपेन्द्रचाणूरबलमूष्टिकाः // 6 // त्वमूद्ध प्रसर व्योम, प्रसर्पत दिशोऽग्रतः / पृथ्वीरंग | स्थिरं धत्त कूर्यक्रोडाहिनायकाः // 7 // दिक्कुंजराः कुलक्षोणिधराश्चाद्याऽवधीयताम् / धत्तुं स्वमेव यत्कृष्णबलौ प्रौढबलौ स्वयम् // 8 // पदाभ्यां वल्गु वल्गन्तौ वीक्ष्यमाणौ सुरासुरैः / मल्लाभ्यां सह युध्येते इति लोकगिरोऽस्फुरन् / / 9 / / त्रि. वि०॥ महाबलाभ्यां ताभ्यां च क्षणाच्चाणूरमुष्टिको / तूलमूलवदुत्क्षिप्य क्षिप्तौ दूरं नभस्तले // 10 // विना कंसं परे चक्रुः श्रीकृष्णबलयोजये / हर्षकोलाहलं लोका| स्तद्गुणप्रगुणीकृताः // 11 // स्वावष्टंभोजितौ मल्लावपि सल्लाघवादथ / व्योमन्यक्षिपतां कृष्णरामौ बाष्पानु वीक्षकाः // 12 // जघान | हृदि चाणूरं दूरं मुष्ट्याऽथ सारया / निःशंकः केशवः शैलमिव दन्तेन दन्तिराट् // 13 // पिष्टोऽपि पिष्टवत्मानात्पुष्यन्नोजायमान| ताम् / चाणूरोऽप्यथ विष्णूरौ मुष्ट्या दृढमताडयत् // 14 // मदेनेव मुकुलिते घाताया॑ऽऽकुलिते दृशौ / मूर्छया मीलिते बिभ्रत्पपाताऽधोक्षजः क्षितौ // 15 // दृष्ट्वाऽऽदिष्टोऽथ चाणूरः कंसेन च्छलबीक्षिणा / कृष्णं जिघांसुर्मूर्छालमप्युत्फालः समाययौ // 16 // बलस्तं सबलं बंधुमवलं हन्तुमुद्यतम् / ज्ञात्वा मुष्टिकमुन्सृज्य प्रकोष्ठेनावधीजवात् / / 18 / / सप्तचापानऽपासार्षीच्चाणूरस्तयथार्दितः। आश्वस्तः पुनराहारत तं युद्धार्थ जनार्दनः // 18 // जानुपां पीडिते मध्ये दोष्णा मूर्द्धनि नामिते / मुष्टिः कृष्णस्य चाणूरं दक्षिणोऽप्यहहाऽवधीत् // 19 // उद्वान्तरक्तश्चाणूरचाऽणूर इव संकुचन् / कृष्णेन मुक्तस्तद्भीतैरिव प्राणैरपि द्रुतम् // 20 // कृत्वा यौक्रिकबन्धेनाऽनुच्छ्वासमथ मुष्टिकम् / बलः संज्ञपयामास यज्ञानीतमिव च्छगम् / / 21 / / कंसे यियासौ कीनाशपुराय चरयोरिव / तयोरने प्रहि| तयोः शौरिभ्यां मार्गशुद्धये // 22 // कोपत्रासवशः कंसो द्विगुणाधरकंपभृत् / इत्यादिशदिमौ गोपाधमौ हत हताशु रे // 23 // नन्द // 34 //