________________ श्रीअमम जिनेश चरित्रम् / // 332 // स्तुतिः // 36 // योजनास्यास्तत्र लोलत्पद्मान पत्रांकुरोद्धरान् / भ्राम्य गस्वनैरहद्गुणगानपरानिव // 37 // तेषामाढौकयामासुर्विधिना तेsप्यथो व्यधुः / स्नात्रं क्रमात्प्रभोश्चित्रवादित्रध्वनिभिः समम् // 38 // दोर्मालारब्धकुम्भौघान्यावृत्तिपरिवृत्तिभिः / देवैः सिन्धुजलाकृष्टौ नवश्चक्रेऽरघट्टकः // 39 // अच्युतायैत्रिषष्ट्याऽथ सुरेन्द्रविधिना जिनः / क्रमेण हर्षेणाऽभ्यया॑ऽस्तावि भावितमानसः // 40 // मूर्तीः पञ्च विकृत्याथ खोत्संगे प्रभुमाददे / ईशानेन्द्रः सुधर्माधिपतौ स्नात्रं चिकीर्षति // 41 // निर्ममे निर्ममेशस्य चतस्रुष्वपि दिक्षु सः / चतुरश्चतुरस्तुंगान् स्फाटिकान् वृषभान् प्रभोः // 42 // तच्छंगाग्रोवंसंचारिक्षीरधाराभिरम्बरात् / सखीभिरिव संभूय भूयः सौहार्दयोगतः // 43 // रभसादापतन्तीभिर्वासनाभिरिवात्मनः / प्रत्यक्षाभिनिर्मलाभिर्भक्त्या सर्वामरैः सह // 44 // विपक्षमशुभं | जिष्णोजिनराजस्य वासवः / चक्रेऽभिषेकं त्रैलोक्यस्वाम्ये गायति तुम्बरे // 45 // त्रि०वि०॥ स्नात्रामृतैविभोः स्वांग श्रद्धया यद-| HT नेनिजुः / देवास्तदाऽन्यदासेदुः सत्यामजरतां ध्रुवम् // 46 // नृत्यत्सुरवधूनेत्रकटाक्ष छुरितं प्रभुं / शची क्षीरोदकभ्रान्त्योन्मार्जती | | वासवोऽहसत् // 47 // दिव्यया गन्धकाषाय्या परामृश्य विभोर्वपुः / चर्चयित्वा च गोशीर्षचन्दनेनाऽथ वासवः // 48 // कल्पद्रुमा-| | दिकुसुमैः संपूज्यामोदमेदुरैः / कान्त्या जितेन्दुमहसी वाससी पर्यदीधपत् // 49 // स्वयं मंगलभूतस्याऽप्यथ शक्रः प्रभोः पुरः / / सकलैर्विलिलेखाष्टमंगली दिव्यतन्दुलैः // 50 // चारुवारीभरभ्रश्यद्भुषामुक्तामणिब्रजैः / नवोद्यत्तारकां मेरोश्चूलिकां कुर्वती भृशम् | // 51 // पुलोमतनयारम्भाप्रभृत्यप्सरसां गणैः / सह प्रेक्षणकं चक्रे श्रीजिनस्य पुरस्ततः // 52 // युग्मम् // स्मेरकैरववनः सहस्रनयनः प्रभोः / मुखेन्दुज्योत्स्नया मन्ये मुकुलत्करपंकजः॥५३॥ सजं निजस्तवमयीमारोप्य पुनरप्यथ / काव्यपुष्पैर्व्यधत्ता_मिति सौरम्यनिभरैः // 54 // देव ! व्योमेव नीरुपममपि नीलोत्पलप्रभम् / स्तौमि त्वां जगदाधारमनाधारमपि सर्ग-७ // 332 //