________________ // 33 // मेरौ जन्माभिषेकः जिनमानम्याऽस्तावीदेवं शिवां स्वयम् // 17 // च०क०॥ शुक्तिनवीना खं देवि! स्ववंशक्षीरनिरधौ। यदंगजन्मा मुक्तात्मा परिष्फूर्ता जगत्त्रयीम् // 18 // प्रभोः जन्मोत्सवं कर्तुमागतं खं सुरेश्वरः / ज्ञापयित्वा शिवादेवीं भेतव्यं नेत्यभाषत / / 19 / / नलिन्या इव शीतांशुस्ततोऽवस्वापिनीं हरिः / दत्वा मातुस्तत्समीपे प्रभोद्भ्य॑न्तरं व्यधात् // 20 // वैशाखवद् वज्रपाणिः पश्चरूपाणि निर्ममे / प्रभौ | व्यंजिजिषुभक्ति जीमूत इव पञ्चधा // 21 // तत्रैकेन मृगांकस्य स्ववक्त्रस्येव योगतः / कोशीभवत्कराम्भोजपुटयोरन्तरे मृदौ // 22 // अनुजानातु मां स्वामीत्युदित्वा भक्तिवामनः / प्रभु शृंगनिधायं स निदधे विबुधेश्वरः // 23 // सेवार्थिनोः श्राद्धसाधुधर्मयोखि | शुद्धयोः / तत्पार्श्वगाभ्यां चोभाभ्यां दधे चामरयोर्द्वयम् // 24 // स्फटिकच्छत्रता प्राप्तं सिद्धिक्षेत्रमिवोज्वलम् / श्वेतातपत्रं तुर्येण प्रभोमनि न्यधत्त सः // 25 // प्रभोमुखे वलद्ग्रीवं सोऽच्छिन्नालोककौतुकः / दत्तदृष्टिः पञ्चमेन वज्रमुल्लालयन् ययौ // 26 // तेनान्तर्वाद्धिनागेन्द्रनालेऽदर्शि धराम्बुजे / स्वर्णाद्रिः कणिकामुद्रः सान्द्रभ्राम्यदनालिकः // 27 / / यो मूर्द्धनि स्थलाऽम्भोजरजोभिर्मा| रुतोद्भुतैः / धृतस्वर्णातपत्रश्रीधत्ते क्ष्माधरराजताम् // 28 // यो वनकुमुमव्याजाद् भर्तुर्योगादिवोद्गतः / वपुर्धत्ते स्म पुलकमुकुलैरिव मालितम् // 29 // तत्रेन्द्रः पाण्डकवने मू व क्ष्माधरश्रियः / विनीलत्पल्लवैवृक्षैः श्यामले कुन्तलैरिव // 30 // उत्तंसकेतकदलद्रो| णीमिव सितद्युतिम् / अतिपाण्डुकम्बलास्यां शिलां श्रृंग इवाश्रयत् // 31 // तदन्त केशरभरमित्र कण्ठीरयासनम् / भेजे परिमलैरेस | रत्नानां च्छुरिताम्बरम् // 32 // तस्मिंश्च प्राङ्मुखे शक्रः क्रोडस्थापिततीर्थकृत् / रेजे योगीव हृत्पद्मप्रकटान्तरपूरुषः // 33 // स्वास नानां प्रकम्पेन त्रिपष्टिरपरेऽप्यथ / ज्ञप्तास्तत्राययुः शक्राः स्वस्वलक्ष्म्याऽच्युतादयः॥३४॥ निर्माप्य रूप्यकनकमृत्तिकामणिभिस्ततः। | केवलैमिश्रितरष्टसहस्रप्रमितान् पृथक् // 35 / / गारान् कलशानाभियोग्यदेवास्तदाज्ञया / आपूर्य सर्वतीर्थाब्धिनदीहृद्जलैः क्षणात् | // 33 //