________________ श्रीअमम जिनेशचरित्रम् / शिवादेवि दृष्टस्वप्न // 328 // कथनम् शिवादेव्या अवातरत् // 59 // गजो वृषो हरिः श्रीः सक् चन्द्रः सूर्यों ध्वजोऽप्यथ / सरोवाद्धिर्विमानश्च रत्नपुञ्जः शिखी ज्वलन् // 60 // महाराज्ञी महास्वमांश्चतुर्दश निशात्यये / एतानपश्यद् वक्रान्तर्विशतः सा समाहिता // 62 // स्वर्वासिनामिव तदा नारकाणामपि क्षणम् / जज्ञे सौख्यं त्रिलोक्यामप्युद्योतश्च व्यज़म्भत // 33 // सा प्रबुद्धा प्रगे तांश्च प्रत्युरत्युत्सुकाऽऽख्यत। विधायावश्यक सोऽपि तां निवेश्य पटान्तरे // 64 / / आह्वाय्य क्रोष्टुकिं नैमित्तकं वान्छितदानतः। सत्कृत्याऽपृच्छदेषोऽपि व्याख्यत्स्वमानिति क्रमात् // 65 / / दन्तीन्द्रवद् दानशौण्डं वृषवद्धर्मधूर्वहम् / सिंहबद् विक्रमोद्रिक्त लक्ष्मीवद् विष्णुसेवितम् // 66 // माल्यवत्सुरभि कीर्त्या चन्द्रवन्नेत्रवल्लभम् / मार्तण्डवत्सप्रतापं ध्वजवत्स्वकुलध्वजम् / / 67 / / कुम्भवद्विश्वमांगल्यं सरोवत्तर्षतापहम् / समुद्रमिव | गम्भीरं देवैः सेव्यं विमानवत् / / 68 // रत्नौघवत्सगुणाढ्यं वन्हिवच्च तमच्छिदम् / पुत्रं जगत्रयाधीशं जिनं राजन्नवाप्यसि // 69 // | // च० कु०॥ चारणो मुनिरिन्द्राश्चासनकम्पागता नृपम् / स्तुत्वा द्वाविंशमावेद्य जिनं पुत्रं ययुर्दिवि // 70 / / करिष्येऽहं महं चेत्तद्रक्ष्यामीन्द्रैः कृतं कथम् / इतीव द्यौः सबैलक्ष्य रत्नवृष्ट्याऽहसन्नृपम् / / 71 // चतुरा भारतीवार्थ वेलेवाब्धिमणिव्रजम् / वसुधेव निधि गूढं देवी गर्भ दधत्यऽभात् // 72 // कान्तामेतामुदरिणी हृष्टा दृष्टिः प्रतिक्षणम् / नृपस्यैक्षत रंकस्य प्रियेव निधिकुम्भिकाम् // 73 // * गर्भस्थस्य विभोर्निर्यद्यशोभिरिख शोभितम् / कर्पूरपूरैर्घटितमिव देहमुवाह सा // 74 // भवाब्धेः स पारगोऽस्तु निर्वन्धश्च जनिता| त्मजः / क्रीडाशकुन्तस्तेनैपा पञ्जरान्मोक्तुमैहत // 75 // गर्भस्थोऽपि मलैस्तैस्तैरस्पृष्टांगः प्रभुर्दधौ / त्रिज्ञानी प्राग्गिरेरकों गुहान्तःस्थ इव त्रयी // 76 // कर्तुं यदैच्छन्नृपतिः कर्म पुंसवनादिकम् / शक्रेण तदुपेत्याशु कृतमेव व्यलोकयत् // 77 / / गर्जातर्जा विद्युतं च विना श्रीदोऽम्बुदो नवः / रत्नादिवृष्ट्या कोशद्धिं राज्ञोऽवर्द्धयदोकसि // 78 // आबाल इव कल्पद्रुः स्थितो सर्ग-७ // 328 //