________________ // 317 // प्रीतिमत्या मदापहारः इति वेत्रवतीप्रोक्ता सा कन्या यं यमैक्षत / शरैरताडयत् तं तमाशाकर इव स्मरः // 52 // अथ सा पूर्वपक्षस्था स्वयं देवीव भारती / वादिनीभूय विद्यासु पप्रच्छेकैकशो नृपान् // 53 // तद्रूपहृतचेतस्काः स्तम्भमाजश्च ते नृपाः / कम्पावरुद्धकण्ठत्वान्नोत्तरं दातुमैशत // 54 // स्त्रीजातिपक्षपातेन पक्षेऽस्याः श्रीसरस्वती / मन्येऽभृदेतया तेन स्त्रियापि विजिता वयम् // 55 // इत्यादिनानाभंगीभिविंलक्ष्येण मिथो नृपैः / जल्पद्भिरेव संजज्ञे लजाभरनताननैः // 56 / / वरं नरेभ्यो नारीति नारीतिमयमौच्यत / प्रीतिमत्याः प्रीतिमत्याः सखीलोकैर्वचस्ततः // 57 // जितशत्रुनृपो दध्यौ सर्वसारोच्चयादिमाम् / सर्वप्रयत्नात् किं सृष्ट्वा स्रष्टा श्रान्तो ध्रुवं जरन् ? // 58 // यन्नानुरूपमेतस्याः कलाभिः प्रवरं वरम् / अस्राक्षीत्क्षीणसद्विद्यनराणुगणदुःस्थितः // 59 // युग्मम् // इयन्त एव क्षोणीशाः सुतायाश्चैषु नोचितः। अभूत्कोऽपि नचान्यश्च भावी किं करवाणि तत् ? // 60 // प्रत्युत्पन्नमतिमंत्री प्रोचे स्वामिन् विपीद मा / बहुरत्नावनी * यत्तद् भावी कोऽप्यधिको गुणैः // 61 // नृपो नृपसुतो वापि यो वाऽन्योऽपि जयेदिमाम् / वरः स एव मत्पुत्र्याः पटहोंष्यतामिति | // 62 // तथैवाऽचीकरद् राजा युक्तमेतदिति ब्रुवन् / तच्छ्रुत्वा स्त्रीवचः स्मृत्वा चाचिन्ति युवभूभुजा // 63 / / विद्यावादे स्त्रिया सार्द्धमुत्कर्षः स्याजयेऽपि न / निषिद्धश्चैष शास्त्रेषु सर्वथैव महात्मनाम् // 64 // किंत्वस्या जितकाशिन्याः स्फुरगोंडुरं वचः। दुनोति | मामियं जाप्या शालभंजिकयैव तत् // 65 // कुमार इति सामों मञ्चपाश्चालिका स्वयम् / तामेव दिव्यमणिना पस्पर्शाऽचिन्त्यश| क्तिना // 66 // ऐन्द्रजालिकपुत्रीव साक्षेपं साऽवदत्ततः / किं गर्वपर्वताग्रस्था तुच्छं जगदपीक्षसे ? // 67 / / किं ? माद्यसि मुधा मुग्धे ! जित्वैतान् नृपशून्नृपान् / मामाश्चर्यकरी पश्य पुरतः प्रतिवादिनीम् // 68 // जिग्ये त्वय्यापि चेन्मुग्धे गुरुमें लज्जते ततः / मन्मूर्द्धनि न्यस्तहस्तः साक्षादेष नृपात्मजः // 69 // आक्षिप्ता शालभंज्येति ब्राह्मपुत्र्येव हेलया / वादं दातुमढौकिष्ट राजपुत्री चमत्कृता // 7 // // 317 //