________________ श्रीअमम // 316 // | // 32 // मञ्चस्यैकस्य पार्श्वे तौ तस्थतुर्मण्डपान्तरे / सरसीव सरोजस्यासन्नौ श्वेतच्छदाविव // 33 // कुमारस्त्वेकपाश्चाल्या मौलौ न्यस्य जिनेश| कराम्बुजम् / पश्यन् कलाधिको मेने न तृणायापि भृभुजः॥३४॥ दिव्यालंकारवसना वीज्यमाना प्रकीर्णकैः / पुरःसरप्रतीहारी दर्य- चरित्रम् / मानपथा मुहुः // 35 // जैत्री ममेयमेवास्ते धनुर्वल्लीति तोपतः / स्मरेण पुष्पस्रग्व्याजात् खधनुर्लतयार्चिता // 36 / / तत्र देवीव al प्रीतिमति कन्याखं प्राप्ता प्रीतिरिवाथवा / आगात्प्रीतिमती सख्या वरमालाभृताऽन्विता // 37 // त्रि०वि० // कुमारी वीक्ष्य तां चेतः केतक-| स्वयंवर श्रीघनावलीम् / स्पष्टमेवं व्यचेष्टन्त क्ष्माभृतः सत्कलाभृतः // 38 // कश्चित्पाणेझणत्कारकारिणं स्वर्णकंकणम् / आकर्षत् तद्गुणोत्कर्ष मण्डपे गमनम् श्रुतिदुर्द्धर्षविघ्नदम् // 39 // अंगुलिभ्यां नर्तयञ्च चम्पकं कस्यचित्करात् / पपात धान्यां तत्कान्त्या लज्जित तु जितं नु किम् ? // 40 // | कर्पूररेणुना स्वांगं निःस्वेदमपि कश्चन / उद्धृत्य कर्णयोश्चक्रे ताडङ्कव्यत्ययं वृथा // 41 // चन्द्राश्मकान्ततद्दन्तकान्तिकोशविमुद्रकम् / नखैर्व्यदारयत्कश्चिदुज्वलं केतकीदलम् // 42 // अथ प्रीतिमतीं प्रोचे मालती नाम वेत्रिणी / क्ष्माचराः खेचराश्चेयुर्विज्ञा देवि ! नृपा | इह / / 43 // एतेषु दत्ते यश्चित्ते कश्चित्ते रुचिरां रुचिम् / एकं च्छेकं तं वृणीष्व वं परीक्ष्य कलानिधे ! // 44 // विभत्तिं यद्यशःस्तोमः | | स्वयं भुवनचन्द्रताम् / सोऽयं भुवनचन्द्राख्यः ख्यातस्त्रिभुवने नृपः // 45 // असौ श्रीसमरकेतुः समरे केतुवद् द्विपाम् / समरेखो न | यस्याभूचेतोभू रूपवानपि // 46 // कुबेरश्चैष भूपालः कुवेर इव सम्पदा / यत्प्रतापाकुलो धत्ते मौलौ सुरधुनी हरः॥४७॥ पुरस्तादेप सर्ग-७ निःशेषक्षोणिभृन्मौलिमण्डनम् / व्यस्तसोमप्रभो द्वेधा कीर्त्या सोमप्रभो नृपः // 48 // यथार्थनामा भीमोऽयं शूरश्च धवलोऽपि च / / अन्येऽप्येते सुराः कामचरा इव महीश्वराः॥४९॥ एते च खेचरीगीतगुणाः खेचरनायकाः / मणिचूडरत्नचूडरत्नप्रभमणिप्रभाः॥५०॥ // 316 // आसीनाः शतशोऽन्येऽपि सन्ति विद्याधरेश्वराः / भारतीव परीक्षस्व ख कलाकुशलानमून् // 51 //