________________ श्रीअमम // 310 // ॐ82159-2451- 22488%AS PR*HER निरोप्य सचिवात्मजम् / अभिमानगजारूढो डुढोके रणकर्मणि // 19 // रोमाश्चमेचकरुचेस्तद्धजस्यान्तकारिणः / जिह्वासिलता जिनेशऽऽकृष्टा रेजे वैरिविनाशिनी // 20 // शौर्य कोशो बलं बाहुः खगो मंत्री मनः सुहृत् / यस्य तस्योचितो राज्ञा सहैकस्यापि विग्रहः / चरित्रम्। | // 21 // न्यस्यैकस्य पदं दन्ते दन्तिनः स च सिंहवत् / कुम्भे गत्वा भटं हत्वा तदत्रौघेरयुध्यत // 22 / / चमूजने भज्यमाने प्रत्य- चौररक्षणाभिज्ञाय केनचित् / आचख्ये मंत्रिणा राक्षे दरिणन्दिसुतो ह्ययम् / / 23 / / नाम्नाऽपराजितो नीरः संग्रामेष्वपराजितः / युद्धे कस्ते त द् युद्धजाते पराजितविनकः स्यात्ससैन्यस्य सम्मुखः // 24 // युग्मम् // युद्धान्निवार्य स्वान्वीरान् कोशलेशोऽपराजितम् / एह्यालिङ्ग मे सुतोऽसि मित्रस्य कोशलेन हरिणन्दिनः // 25 // पराजयो मे त्वत्तस्ततो नैव त्रपाकरः / तदेहि स्वगृहाद्दिष्ट्या प्राप्तोऽसि स्वगृहं यतः // 26 // आलप्येत्यालिलिंगैनं विवाहिता | स गजस्थो गजस्थितम् / प्रतिपन्नं सतां मित्रपुत्रेष्वप्यऽन्यथा किमु ? // 27 / / कुमारोऽपि पितुर्मित्रं ज्ञात्वा तन्मंत्रिणो गिरा। नम्रो स्वपुत्री नीत्या विनत्या च लजया चानमन्नृपम् / / 28 // भूपः कुमारमारोप्य स्वहस्तेन वहस्तिनि / स्वपुत्रमिव वात्सल्यान्निनाय निजमन्दिरे |29|| विसृज्य चौरं विमलबोधोऽप्यागत्य पृष्ठतः। तस्याऽमिलत्तस्थतुश्च सुखं तत्राऽवियोगिनौ // 30 // सुतां कनकमालाख्यां कुमारेण नरेश्वरः / व्यवाहयन्नगाधीशः शंकरेणेव पार्वतीम् // 31 // पृथ्वीकुतूहलालोकोत्सुको तावन्यदा निशि / अनाख्याय महीशाय द्रुतमेव निरीयतुः // 32 // हहा वन्ध्या धरा वीरें रिति रोदनशब्दितम् / वने शुश्रुवतुर्यान्तौ तौ कालीसदनाश्रयम् // 33 // कामप्यार्ती | सग-७ स्त्रियं ज्ञात्वा कारुण्यादपराजितः / ययौ शब्दानुगस्तूर्ण शब्दापातीव मार्गणः // 34 // प्रज्वलद्वन्हिकुण्डस्य पार्श्व स रुदन्ती स्त्रियम् / रुद्धां मृगीमिवाऽद्राक्षीदतिकरण खड्गिना // 35 // वीरोऽस्ति कोऽपि चेत्तन्मां पात्वऽस्माद् दुष्टखेचरात् / इत्याक्रन्दं पुनश्चक्रे वृकात्ता- // 31 // च्छगलीव सा॥३६॥ कुमारस्तमथ प्रौढोत्साहः प्राह स्म खेचरम् / मया सनाथां वसुधामेतां रेरे न वेत्सि किम् ? // 37 // यद्यस्ति