________________ // 307 // चित्रगतिरत्नवत्यो लग्नम् | मथान्वभूत् / राग जागरयामास मत्पुत्र्याश्चाशु दर्शनात् // 62 // वरोऽयं रत्नवत्याश्चानुरूपो ज्ञानिनौच्यत / विश्वऽप्यनेन जामात्राऽभवं मात्राधिको नृषु // 63 / / वक्तुं युक्तं न सम्बन्धादिकं देवगृहेऽधुना / ध्यात्वेत्यनंगसिंहोगात्स्वस्थानं सपरिच्छदः // 64 // सुमित्रदेवं सम्भाष्य व्यसाक्षीत् खेचरानपि / पित्रा समं चित्रगतिरपि स्वास्पदमागमत् // 65 // अनंगसिंहः श्रीसूरचक्रिण निजमंत्रिणा / विनीतेनेत्यभाषिष्ट विशिष्टप्रणयान्वितः // 66 // देव ! चित्रगतिश्चित्रगतिरूपादिभिगुणैः। लोकोत्तरैः सुतस्तेऽसौ चित्राय धुसदामपि // 67 / इयं च पुत्री मे रत्नवती रत्नवती भुवं / अनाहार्यस्य कुरुते स्वसौन्दर्यस्य लीलया // 68 // रत्नयोरनयो| योगं कुरु विज्ञाग्रणीरसि / ईशिपे च विवाहाय त्वमेवेहाद्रियस्व तत् // 69 / / शूरोऽपि प्रतिपद्याशु तद्वचो गणकार्पिते / तयोः सुलग्ने | वीवाहमुत्सवेन विनिर्ममे // 70 // तया साद्धं सम्मिण्या धर्मकामावसेवत / पुष्टोऽप्यर्थेन सख्येव शश्वचित्रगतिः सुखम् // 71 // मनोगतिचपलगत्याख्यौ तौ तस्यैव चानुजौ / जातौ च्युत्वा धनदेवधनदत्तसुरौ दिवः // 72 / / पूर्णपार्श्वः स ताभ्यां च रत्नवत्या च | निर्ममे / महेन्द्रवरखेचरोऽयं यात्रां नन्दीश्वरादिपु / 73 / / असौ विदेहभरतैरावतेष्वर्हदन्तिके / धर्म शुश्राव बन्धुभ्यां प्रेयस्या चा|न्वितः सुधीः / / 74 // सूरश्चक्री न्यस्य राज्येऽन्यदा चित्रगतिं सुतम् / प्राज्यं संयमसाम्राज्यं प्रपद्यागात्परं पदम् // 75 / / बह्वीः | विद्याः साधयित्वा द्वेधा शूर इवौजसा / अनेकान् खेचरपतीन् पत्तींश्चक्रे स हेलया // 76 / / मणिचूडे स्वसामन्ते मृते राज्यामिपेच्छया। | तस्य पुत्रौ शशिसूगै सवेरी पक्षिवन्मिथः // 77 / / विभिद्य दत्वा तच्चक्रवर्ती चित्रगतिः स्वयम् / धर्म्यवासिः प्रबोध्याऽतिष्ठिपत्सु रुवत्पथि // 78 // युग्मम् // तौ करिण्यामिवैकस्यां लक्ष्म्यां लुब्धौ तथापि धिक् / मत्ती बनेभवद् युद्धा मिथोऽन्येधुर्व्यनश्यताम् // 79 / / वार्ती चित्रगतिः श्रुत्वा तयोस्तामतिदुःश्रवाम् / इत्थं शमकृतारोग्यं वैराग्यं हृदि शिश्रिये // 80 // लक्ष्मीरुत्पादिता पित्रा 30