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________________ // 531 // क्षेमंकरस्य दीक्षा सोपानपंक्तौ मकरस्ततः / एत्य क्षेमकरः पद्मरायद् भूपतेः पदौ // 36 / / युग्मम् / / भुजोपपीडमालिंग्य राज्ञा हृष्टेन मन्त्रिराट् / स्वस्मै निगर्हमाणेन स्वयमेवमवर्ण्यत // 37 // विवेकनेत्रहीनस्य ममाप्रेक्षाविधायिनः / क्षम्यतामपराधोऽयं साधो धृय ! महात्मनाम् | | // 38 // धर्मः स्वात्यम्बुवजज्ञे शुक्तिकोश इव त्वयि / मुक्तात्मत्वाय मयि तु विषादित्वाय सर्पवत् / / 39 / / त्वया धर्मो गुणारोपाचक्रे भव्येषु मुक्तिदः / मया तु भग्नो मूर्खण दत्तोऽपि गुरुणा समम् // 40 // नासीन्नास्ति नवा भावी त्वत्समः कोऽपि बुद्धिमान् / | मजन् घटशतेन ख यच्छुप्तो बिन्दुनापि न // 41 // सहजं कालकूटस्य पीयूषं मारयेदऽपि / क्षेमकरस्तु नो सच्चान् किं ? पुनर्मां निजप्रभुम् // 42 // कार्य यथा श्रुतग्राही विनाशयति निश्चितम् / इयं वागन्यथा नैव यन्मया परवाक्यतः // 43 / / जिघांसया तेऽनपराधस्याऽसद्दोपरोपणैः / धर्मो जने निज एवाऽक्षेपि स्वात्मा च दुर्गतौ // 44 // युग्मम् / / मुहुरित्यनुतापेन मापतिः स्वमशोधयत् / अग्नि| शौच हि वसनं किं ? न शुध्यति बन्हिना // 45 / / ताड्यमानैश्च भूपेन कोपतो मायिभिनरैः / आचख्ये जीर्णसचिवः सर्वमेतद|ऽकार्यत // 46 // | क्रुद्धोऽथ क्ष्मापतिः सार्धं कुटुम्बैर्जीर्णमन्त्रिणः / विमुच्य जीवतः क्षेमोपरोधान्निरवासयन् // 47 // सत्कृत्य वस्त्रालंकारैः स्वपा श्वेऽध्यास्य हस्तिनि / नीत्वाऽऽवासे स्वासनार्द्ध निवेश्याधिकगौरवात् // 48 // प्राञ्जलिभूपतिः क्षेमकरं मन्त्रिणमब्रवीत् / सर्वेश्वरस्वमुद्रा | ते पुराऽप्यस्त्येव मन्त्रिराट् // 49 // किं ? वदान्य वदाऽन्यत्ते प्रियं कुर्वेऽधुना ततः / राज्यप्रदानमप्यल्पं भक्तनिरुपधेस्तव // 50 // |त्रि०वि०॥ त्वया नच परिव्रज्या ग्राह्या सा स्वत एव यत् / अस्ति स्वस्तिकरी मंत्रिस्तव भावयतेः सदा // 51 // राज्ञा निषिद्धेनापीत्थं | प्रव्रज्या प्रार्थि मंत्रिणा / निरन्ध्याद् वाद्धिवारीव प्रसरत् कः ? सतां मनः // 52 // युग्मम् / / बाष्पायमाणनेत्रेण भूभुजाऽनुमतस्ततः / // 53 //
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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