________________ श्रीअमम सप्तदशः सर्गः। जिनेशचरित्रम् / भरते शतद्वार नगर // 488 // वर्णनम् अथास्ति जम्बूद्वीपेऽस्मिन् द्वीपान् सुभटवत् परान् / जेतुं मेरुमिषान्न्यस्य जयस्तम्भं स्थिरे स्थिते // 1 // मेरोदक्षिणतः क्षेत्रं पवित्रं भरताख्यया / यत्राघनोदकेऽपि स्युः कौतुकं शस्यसम्पदः // 2 // युग्मम् // भिन्न तसिन्धुगङ्गान्तःस्थितेन रजताद्रिणा / दुर्व| हेण शिरोभारेणेव षट्खण्डतामगात् / / 3 // मध्यमेऽप्युत्तमे तस्योत्तमपूरुषजन्मना / खण्डे खण्डेन्दुतिलकाकृतौ दक्षिणदिस्त्रियाः | // 4 // भावी जनपदः पुण्ड्रनामा पुण्ड्रेक्षुदण्डवत् / द्वेधा सुपर्वणां वृद्ध्या त्रिदशावासहासकृत् // 5 // युग्मम् // महीमहेलाकर्पूरगौर: | पुण्ड्रैखिाहताम् / प्रासादभूषयन् सत्यं नाम यःखं धरिष्यति // 6 // यं स्रष्टा खर्भुवर्लोकावपवाह्य ध्रुवं विधिः। कुतोऽन्यथाऽत्र द्रक्ष्यन्ते निर्जरा भोगिनो जनाः // 7 // निःसपत्नैरभिरूपरत्नौधैर्निचितान्तरः / भविता यः सरस्वत्या देव्याः सर्वस्वकोशवत् // 8 // कल्पद्रोरिव यस्यास्तदारिद्यस्याश्रयं जनाः। वाञ्छिष्यन्त्यऽन्यदेशस्था अप्यभीष्टसुराचनैः // 9 // अनीत्युपद्रवे यत्र किं? चित्रं यद्विधास्यति / अलंकर्मीणतां लोको धर्मकर्मवऽहर्दिवम् // 10 // चतुरिमपि भावि तस्मिन् शतमुखं श्रियाम् / प्रवेशायेव सत्याख्यं शतद्वार महापुरम् // 11 // ज्ञास्यन्त्यखलमप्युच्चैबोंधिधान्योत्करैर्जनाः। यद्भारतस्य क्षेत्रस्य खलवद्विपुलस्थितिः॥१२॥ प्रासादैनिर्मितोदामसुरविग्रहडम्बरैः। भटैरिवोदस्तदण्डैर्यजेष्यत्यमरावतीम् // 13 // शोभनप्रीतिसौभाग्यधृतिविष्कम्भसंकथा / भवित्री यत्र नक्षत्रसूचकेषु जनेषु न // 14 // आशैशवात् पञ्चवर्गाभ्यासवानपि यजनः / चतुर्वर्ग एव दाक्ष्यं दर्शयिष्यति कौतुकम् // 15 // यत्र व्याजोक्तिव |सर्ग-१७ // 488 //