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________________ श्रीअमम इत्याचार्यश्रीमुनिरत्नविरचिते अममस्वामिचरिते महाकाव्ये बलदेवचरित्र-ब्रह्मलोकोत्पत्ति-पञ्चमभव-तथापाण्डवशेषचरित नेमिनिर्वाण-वर्णनः पञ्चदशः सर्गः // ग्रन्थानम् // 135 // षोडशः सर्गः। जिनेश| चरित्रम् / कालस्वरूप कथनम् // 476 // उत्सर्पिण्यां द्वादशोऽर्हन्नममो नेमिनोदितः / भविता वालुकोद्वृत्तः कृष्णजीवोन भारते // 1 // भाविन्युत्सर्पिणी चावसर्पि-| | ण्यन्ते ततोऽनयोः। जिनेनाऽपश्चिमेनोक्तं प्राक्स्वरूपं निरुप्यते // 2 // राजीव मंत्रिणा द्वैधीभावं विद्याधराद्रिणा / कारिते भारते कालोऽप्यधात् तद्योगजं ध्रुवम् // 3 // तत्रारः षभिरुत्सर्पद्भावैरुत्सर्पिणीत्यभूत् / कालवृत्तिविपरीतैरेतैरेवावसर्पिणी // 4 // कालारघद्वे | भ्रमति नरक्षेत्रान्तरन्वहम् / भजतश्चक्रतामेते पर्यायेणैव कौतुकम् // 5 // तत्र वाद्धिचतुःकोटिकोटिप्रमितिरादिमः। सुषमासुषमाख्यो| SH कल्पद्रुप्रीतयुग्मिभृत् // 6 // त्रिगव्यूतोच्छ्रितदेहाः पल्यत्रितयजीविनः / मारूयहाशिनोऽप्यत्राऽहमिन्द्र श्रीविजित्वराः // 7 // त्र्यब्धिकोटीकोटिमानो द्वितीयः सुषमारकः। युग्मिनोत्र द्विपल्यायुद्भिगव्यूतद्वयहाशनाः // 8 // अरस्तृतीयः सुषमदुःषमाख्योऽस्य तु प्रमा। अम्भोधिकोटिकोट्यौ द्वे कालस्याऽप्यहह त्रुटिः // 9 // एकगव्यूतोच्चदेहा एकपल्यायुषोत्र च / एकाहतः कल्पवृक्ष. फलाहाराश्च युग्मिनः // 10 // पूर्वलक्षचतुरशीत्या नवाशीतिपक्षया / न्यूनेवायोऽभवत्सार्वः तीर्थकृद् भरते जिनः॥११॥ एका-| *म्भोधिकोटिकोटिदुःपमासुषमारके / तुर्ये मितिर्द्विचत्वारिंशच्छतोनाब्दसहस्रकैः // 12 // पूर्वकोट्यायुषः पञ्चधनुःशतसमुन्नताः। सर्ग-१६ // 476 //
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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