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________________ श्रीअमम न्वितः। सच्चक्रनन्दको बद्धजिननामा नरोत्तमः // 85 // परमाधार्मिका यत्र खैरं विभ्रति विभ्रमम् / तां तृतीयां भुवं प्राप द्वारका मिव वालुकाम् // 86 // युग्मम् // कौमारे किल यस्य षोडशसमाः सन्मण्डलित्वे पुनः, षट्पश्चाशदथाष्टदिग्जयमहापर्वण्यऽतीयुः // 468 // * सुखम् / वषाणामगमत्तथा नवशताव सुखम् / वर्षाणामगमत्तथा नवशतीविंशाऽर्द्धचक्रिश्रियो भोगे तस्य जनार्दनस्य चरितं कस्येह नाश्चर्यकृत् // 87 // युग्मम् / / अमम| चरिते भाविन्येवं तयोः सहजन्मनोबलहरिभवे तुर्ये वयें निशम्य लघोर्जनैः। फलमविकलं खोप्तस्योचैर्निदानतरोभवद्वितयविपदा हेतुं हातुं मतिः क्रियताममुम् / / 88 // इत्याचार्यश्रीमुनिरत्नविरचिते श्रीअममस्वामिचरिते महाकाव्ये द्वारकादाह-कृष्णावसान पञ्चमभवप्राप्तिवर्णनश्चतुर्दशः सर्गः // ग्रं० 190 // पञ्चदशः सर्गः। जिनेशचरित्रम्। ज्ञाते मरणे बलदेवस्य महान् विषादः वारि वारिजपत्रेऽथ गृहीत्वा शाङ्गिणोऽन्तिके / आगादस्खलितः स्खल्यमानोऽप्यशकुनैबलः॥१॥ वत्सः श्रान्तः सुखं शेता| मिति क्षणमयं स्थितः। रक्ताक्तं वीक्ष्य वस्त्रं तु तं विवेद चिरान्मृतम् // 2 // रामोऽथ मूर्च्छयाऽलोठीच्छिन्नमूल इव द्रुमः / सुहृदेव | घनाट्टैण मरुतोच्चैस्तु निर्ममे // 3 // कृत्वा क्ष्वेडो वनवनेचरक्षोभकरीमयाम् / ऊचे येनेह मे भ्राता सुप्तोऽघाति ब्रवीतु सः // 4 // सुप्तं | * प्रमत्तं स्त्री चालं मुनि च प्रहरेत यः। सुभटापसदः सैप क्षत्रियान्वयदूषणम् // 5 // इत्युच्चैःकारमाक्रोशन् बलो भ्रान्त्वा वनान्तरे।* सर्ग-१५ // 468 //
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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