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________________ // 465 // * दिव्यरूपं व्यघीयत // 29 // भोज्यमूमिकया मद्यमादाय कटकेन च / बले प्रचलिते राज्ञ इत्याख्युदण्डपाशिकाः // 30 // ऊमिका कटके दिव्ये दत्वा भोज्यं सुरामपि / जग्राह चौरवत्कोऽपि विद्मो मृा बलं पुनः // 31 / / बहिः स गच्छन्नस्तीति मत्वा कुरु यथो-18 पाण्डुमथुराचितम् / श्रुत्वेति भूपोप्यक्रुध्यद् वैरी पाण्डववैरतः॥३२॥ युग्मम् // अच्छदन्तोऽभिधानेन धृतराष्ट्रसुतः स हि / हतशेषीकृतः मार्गे कृष्णपाण्डुसुनुभिः कृष्णबन्धुभिः // 33 // हन्तुं ससैन्यस्तद्वैराद् बलं तत्राययावयम् / अचीकरत्प्रतोल्याश्च कपाटौ पातितार्गलौ // 34 // कृताच्छद्| बलो मुक्त्वा भोज्यमद्ये स्तम्भं चोत्पाट्य दन्तिनः / क्ष्वेडां कृत्वा कृष्णहूत्यै युयुधे तद्बलैः सह // 35 / / कृष्णोऽपेत्य पाणिपातैः न्तपराजयो * कपाटौ सार्गलावपि / भक्त्वा बलापितेनाऽरिसैन्यं स्तम्भेन जनिवान् // 36 // शूराणां हि द्विपक्षेत्रोर्बहुसैन्यं तु डम्बरः / हन्ति त्रिलो जलगवेप णार्थ बलस्य * कीमेकोऽपि कुपितो नान्तकः किमु // 37 // भग्ने सैन्येऽच्छदन्तोऽपि भग्नदन्त इव द्विपः / सप्तधा तु मदे शान्ते विष्णोर्वश्यत्वमाययौ मच // 38 // न नो जगाम दोःस्थाम धाम शौर्यस्य रे ततः / किं ? व्यधास्त्वं मुधा युद्धं जीवन्मुक्तोसि वैर्यपि / / 39 / उक्त्वेति तं हरिः सीरियुक्तो गत्वा बहिर्वने / भुत्त्वाऽगच्छत् दक्षिणस्यां कौशाम्बे जग्मिवान्वने // 40 // युग्मम् / / तत्र पुण्यक्षयाद् दुःखाद् ग्रीष्मान्मा| गश्रमादपि / मद्यात् सलवणाहारात् तृषार्तोऽभूद् भृशं हरिः // 41 // अथोचे सीरिणं कृष्णस्तृपा मां बाधतेऽधिकम् / चलितुं न क्षमे | सान्द्रच्छायेऽप्यस्मिन्महावने // 42 // बलोऽप्यूचे त्वत्कृतेऽहमानेष्ये शीतलं जलम् / अप्रमत्तस्त्वमत्रास्स्व तरोछायाकुले तले // 43 // अहो दुःकर्मणा मोहं नीतौ तौ यत्प्रभोर्वचः / विस्मारितौ नाज्ञासिष्टां तुदकष्टं रिष्टमिष्टहृत् // 44 // हरिः पादं न्यस्य जानूपरि पीता. म्बरावृतः / श्रान्तः सुप्तस्तरोमूले निद्रा लेभे क्षणात्पथि // 45 // गच्छन् रामः पुनः प्रोचे भ्रातर्मा प्रमदः क्षणम् / छलयन्ति प्रमत्तं हि // 465 // क्षुद्रा देव्यो द्विपोऽपि च // 46 // अबोचदुन्मुखश्चोच्चैः शृण्वन्तु वनदेवताः / मया मुक्तोऽस्ति वः पार्श्वेऽनुजो यत्नेन रक्ष्यताम् // 47
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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