________________ श्रीअमम // 298 // जिनेशचरित्रम्। धनप्रेषितौ लेखहारौ द्वयोर्लमोरसवश्व साधयिष्यावहे शीघ्रमतः सुभ्र! धृता भव // 88 // युग्मम् // इत्थं लेख दत्तमुद्राशृङ्गारं हारमप्यथ / गुणववृत्तमुक्ताभिरामं कामं |* |दृशोः प्रियम् // 89 // धनो धनवतीतुष्टथै समर्प्य खयमादरात् / सत्कृत्य कृत्यविद्द्तं तं वस्त्राद्यैर्व्यसञ्जयत् // 10 // युग्मम् // दूतोऽपि | शीघ्रमागत्याऽकथयत्सिंहभूभुजः / श्रीविक्रमधनेनार्थ कृतिनाङ्गीकृतं मुदा // 91 // आपैयद्धनवत्याश्च लेखहारौ कृतानतिः / आख्यच्च | | ते धनेनेतौ स्वपाणिलिखितापितौ // 92 // आदाय पाणिना हारं कुमारमिव सद्गुणम् / उन्मुद्यावाचयल्लेखं सोल्लेख धनवत्यपि // 13 // |* | तदुक्त्या सुभगाग्रण्या खं तेनाऽङ्गीकृतं हृदि / ज्ञात्वा कदम्बमुकुलोपमेयं सा वपुर्दधे // 14 // अयं हारः स्फारमुक्तासारः स्वभुजयोरिव / / | तेन प्रजिध्ये मूतिमत्कण्ठाश्लेषत्वरावतोः // 95 // चिन्तयित्वेति तं हारं न्यस्य स्वे कण्ठकन्दले / पारितोषिकदानेन सा तं दूतं व्यस यत् // 96 // सिंहराजोऽथ पुण्याहे सहितां वृद्धमंत्रिभिः / प्राहैषीदऽचलपुरे परमर्द्धिबलान्वितैः // 97 // वत्सला विमलापीति कृताप्रश्नां निजा सुताम् / उपदेशमणिमालां निर्मला पर्यधापयत् / / 98 // भयाः श्वशुरयोभक्ता भर्तृश्चित्तानुवतिनी / परिच्छदे दक्षिणा च सपत्नीष्वपि वत्सला // 99 // पत्युः प्रसादेऽनुत्सित्ताऽपमानेऽप्यविकारिणी / स्निग्धा बन्धुजने नित्यं तन्मित्रेषु सनर्मवाक् // 10 // युग्मम् / सलेहमनुशिष्यैवं माता साश्रुविलोचना / भूयोभूयः परिरम्भं सृजन्ती व्यसृजत्सुताम् // 1 // पादोपपीडमानम्य धनवत्यपि मातरम् / चचाल याप्ययानस्था चामरच्छत्रशोभिनी // 2 // साश्चर्यमीक्षिता पौरैः प्रापाञ्चलपुरं क्रमात् / धनस्य मूर्तिभागलक्ष्मीरायातेव स्वयंवरा // 3 // निवेश्य शिविरं तस्थौ बहिरुद्यान एव सा / प्रावर्तत शुभे लग्ने महोद्वाहमंगलम् // 4 // रजन्येव सुधामूर्तिः पौलोम्येव पुरन्दरम् / नवोढया तया रेजे कुमारो नवयौवनः // 5 // रत्येव धनवत्या स रूपेण मकरध्वजः। रममाणोऽनयत्कालं बहुमेकमुहर्त्तवत् // 6 // स विक्रमयमाणोऽश्व दोलत्काञ्चनकुण्डलः। मूर्तिमानिव रेवन्तः प्रापदुद्यानमन्यदा // 7 // चतुर्ज्ञानधरं सर्ग-७ // 298 //