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________________ // 297 // धनोपरि धनवत्या प्रेषितं पत्रम् न्यवेदयत् // 69 // प्रत्येति स्म धनवती न तद्वाक्यमसावृजुः / कार्यान्तरेऽपि प्रहितं मदर्थ मन्यते स्म तु॥७०|| ततः कमलिनी प्रोचे दूतोऽद्याप्यत्र विद्यते / तं पृच्छाहाय्य हस्तस्थे कंकणे दर्पणेन किम् // 71 // भावज्ञा तत्र तं दूतं साऽऽनिनाय विचक्षणा / आकर्ण्य | तन्मुखात्सर्व मुदं धनवती दधौ // 72 // विलिलेख ततो लेख कौङ्कुमेन रसेन सा / प्रापयाऽमुं धनस्येति साकूतं दूतमादिशत् // 73 // दूतोऽचलपुरे शीघ्रं प्राप्तः श्रीविक्रम नृपम् / उपतस्थेऽन्तरास्थानस्थितं द्वाःस्थनिवेदितः॥७४॥ प्रपच्छ राजा भोः क्वचित् कुशलं सिंह| भूपतेः। विकल्पैराकुलं चेतः शीघ्रं भूयस्त्वदागमात् // 75 / / | कुशलं देव! देवो मामिह प्रतिष्ठिपत्पुनः। धनाय त्वत्कुमाराय दातुं धनवती सुताम् // 76 // रूपादिभिर्गुणैर्यद्वत्त्वत्सुतो धन| वत्यपि / तद्वदुत्कृष्यते युक्तोऽनयोयोगः समानयोः // 77 // स्नेहो वा पूर्वरूढोऽयमितोऽपत्यसमागमात् / नितरां वृद्धिमायात जलसे| कादिव द्रुमः // 78|| ओमित्युक्त्वाऽथ सत्कृत्य विसृष्टः पृथिवीभुजा / जगामोपकुमारं स प्रतिहारनिवेदितः // 79 // नमस्कृत्योपविष्टः स शंसित्वागमकारणम् / प्रेषि वोऽयं धनवत्येत्युदित्वा लेखमार्पयद् // 8 // भित्त्वा मुद्रां धनः स्वेन पाणिना तमवाचयत् / पुष्पायुधनरेन्द्रस्य प्रत्यक्षमिव शासनम् // 81 // परिभूतो भवन्मूर्त्या स्मरवीरो जगजयी / त्वय्यप्रभूष्णुर्वैरं च वहन् गत्वाऽऽततायिताम् // 8 // | हृदयं त्वन्निवासं मे तथाग्नेयेषुणाऽदहत् / बाष्पाम्बुना यथा नेत्रैः सिक्तमप्यशमन्नहि / / 83 // तत्वं नाथ घनप्रेखदृष्टिपीयूषवृष्टिभिः / | निर्वाप्य खं दयावीर मां च त्रायख सत्वरम् // 84 // त्रि०वि०॥ तस्याश्छेकोक्तिवैदुष्या धनो दध्यौ चमत्कृतः। प्रमोत्कर्षमहो भंग्या मयि साऽऽख्यत् खचित्तगम् // 85 // कुमारोऽपि प्रतिलेखं लिलिखेति विशेषतः / मृगनाभिरसेनाशु शृंगारेणेव देहिना // 86 // ममोरसि त्वां दधतो रतिरूपविजित्वरीम् / चेतो रतिपतिः कोपात्प्रहरत्यनिशं शरैः // 87 // आवामेनं मिलित्वा तत्करबन्धविधानतः। // 297 //
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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