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________________ श्रीजमम // 458 // चतुर्दशः सर्गः। जिनेश चरित्रम् / विहरन् भूरिदेशेषु भगवान् भानुमानिव / रैवताद्रौ वृतो देवैरन्यदा समवासरत् // 1 // तन्नियुक्तन'रेत्य ज्ञापितः श्रीजिनाग द्वैपायनवृमम् / तेभ्यः कृष्णः प्रीतिदानं प्रीत्योज्वलमुखो ददौ // 2 // आज्ञाप्य पटहैः पौरान् समादिश्योत्सवं पुरि / स्नात्वा स्वयं तु वारस्त्री शतान्तकथनं | कृतकौतुकमंगलः // 3 // पुण्यलावण्यदुधाब्धेर्वेलयेवाभितो वृतः। अभंगरंगतत्सर्वांगः चन्दनालेपनच्छलात् // 4 // दधत्सुपूरकर्पूर द्वारिकातो * मद्यनिष्का| लेखां भालान्तरस्थिताम् / एकत्वमिव शंसन्ती नेमिभक्तेषु भूतले // 5 // बिभ्राणोंऽशद्वये दिव्यचन्दनस्थासकच्छलात् / पातुं शौर्यामृतं सनं च रूप्यपात्रे राज्यजयश्रियोः // 6 // वसानो वाससी चन्द्रकरैयूँते इवोज्वले / चलत्क्षीरोदमध्याधिवासभ्रमकृती जने // 7 // सितच्छत्र|च्छलान्मौलौ पक्षयोश्चामरच्छलात् / मुक्ताभूषामिपादेहे पदोः श्वेतेभदन्तभः // 8 // सेव्यमान इव स्वाभिमाभिर्जयकीर्तिभिः / भ्रान्त्वा | त्रिभुवनं प्रत्यागताभिः प्रीतियोगतः // 9 // बन्दिकोलाहलोन्मित्रैस्तूर्यसांराविणैर्दिवः / आह्वयन्निव देवेन्द्र सोऽगानन्तुं जिनं गिरौ | // 10 // अष्टभिः कु०॥ प्रविश्य विधिना तत्र नेमि नत्वा च भक्तितः / कृष्णः सतृष्णस्तद्वाचामप्राक्षीद् विनयादिति // 11 / / कुतोऽपि सर्ग-१४ भविता हेतोरथवा कालतः स्वयम् / विनाशोऽस्या महापुर्या यदूनां मम च प्रभो! // 12 // अथाचख्यौ जिनः शौर्यपुरसीम्नि परासरः। तापसो यमुनाद्वीपे पुरा हेतोः कुतोऽप्यगात् // 13 // काश्चिन्नीचकुलां कन्यां कामातस्तत्र सोऽभजत् / द्वीपायनोऽभूत्तत्सूनुः ब्रह्मचारी शमी दमी // 14 // स परिबाट वसन्नत्र वनान्तर्यदुसौहृदात् / मद्योन्मत्तैः कुमारस्तैः शाम्बाबैनिहनिष्यते // 15 / / क्रुद्धो धक्ष्यति स // 458 // | द्वारखतीं यदुकुलैः समम् / भ्रातुर्जराकुमारात्ते भावी मृत्युर्जरासुतात् // 16 // कुलान्तकोऽयमित्यन्तर्यदुभिर्मलिनाशयैः / दृष्टो भ्रातृव्य
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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