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________________ // 455 // अन्तराय | // 56 // क्ष्मातले सकले प्रायो लोकः पूजितपूजकः / स्तोकः पुनर्मुधादायी शरन्मेघ इवानघः // 57 / सोऽन्वथैर्मोदकैस्तृप्तोऽर्हद्वाक्यैनिःस्पृहाग्रणी। परलब्धिरिति ज्ञात्वा मुनिस्तान् द्रव्यमोदकान् // 58 // परिष्ठापयितुं गत्वा प्रारेभे स्थण्डिलेऽमले / सदा पार्श्वस्थयो | रागद्वेषयोरन्तरे स्थितः / / 59 / / युग्मम् // कर्माजीर्णमहो दुश्चिकित्स्यं तनुमतामिति / तस्य भावयतो घातिक्षयादऽजनि केवलम् // 60 // | प्रभुं प्रदक्षिणय्याथ गत्वा केवलिसंसदि / न्यपीदद् ढण्ढणमुनिः सुरासुरनराचितः / / 61 // अलङ्कृत्य विहारेण धात्री मुक्तामयश्रिया | स्वामी व्यभूषयद् द्वारवतीमपि मुहुर्मुहुः // 62 // उज्जयन्तो गिरियस्याः पाश्व हरिरिवापरः। स्थितः स्निग्धाञ्जनश्यामतनुस्तुङ्गो * विराजते // 63 / / मन्ये तुङ्गौयुतं शृङ्गगंभीरैः कन्दरैरपि / दिवस्पृथिव्योरर्थेनायमुञ्चविंदधे विधिः // 64 // सप्रस्थोऽप्यपरीमाणः पादेयः प्रसृतोऽप्यगः / सवनोऽप्यवनः सत्यमगम्यो द्युसदामपि // 65 // सदा नभोगैः सस्त्रीकैर्यस्य रम्यालतागृहाः / सदा नभोगैः | सेव्यन्ते स्वर्गादेत्य कुतूहलात् // 66 // यस्य पुन्नाग-नारंग-जम्बूचूतवनाकुलम् / शृङ्गं श्रयन्ते सूर्याश्वाः श्रान्तास्ताराध्वचङ्कमात् / / | // 67 / महानऽदीनां धत्ते यः सरत्नशिखरोन्नतिम् / महानदीनां प्रभवः श्रवन्निर्झरवारिभिः // 68 / / सूर्योऽपि रथमार्गार्थी यं पादा | | ग्रेषु सेवते / शैलराजं पुनाति स तं नेमिस्तीर्थनायकः // 69 / / सप्तभिः कु० / / तस्य मूर्ध्नि स्थिते नाथे स्थनेमिरथान्यदा। भिक्षा भ्रान्त्वा द्वारवत्याः प्रतिस्वाम्यज्वलन्मुनिः॥७०॥ अकस्माजातया मेघस्याद्रेमिंत्रस्य वर्त्मनि / स वृष्ट्याऽभ्याहतः काश्चिद्गृहां गुप्ता| मशिश्रियत् // 71 // युग्मम् / नेमि नत्वा तदा साध्वी राजीमत्यपि देवतः। यान्ती पुरी प्रति गिरेवलिता वृष्टिकष्टतः // 72 / / भीतास्वन्यासु साध्वीषु कुञ्ज लीनावितस्ततः / रथनेमिगुहां भेजे तदन्तस्तमजानती // 73 / / युग्मम् // रथनेमि तमश्छन्नमपश्यन्ती | पुरागतम् / तत्रोद्वापयितुं वस्त्राण्यूर्द्धस्थाऽपि मुमोच सा // 74 // रथनेमिस्तथा पश्यंस्तां सद्यो ध्वान्तवासिनः / स्मरभिल्लस्य भल्लीनां प्राप्तकेवलढण्ढणमुनिः रेवताचले प्रभोरागमनम् // 455 //
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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