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________________ श्रीअमम जिनेश| चरित्रम् / ढण्ढणमुने रभिग्रहम् // 454 // | सत्वपि // 38 // स भौमवद् द्वितीयोऽन्यसाधूनामपि कौतुकम् / निजघान क्रूरकर्मा लाभं लब्धिमतामपि // 39 // नवं कपोतं | तत्कर्म मन्ये तत्र क्षमारुहि / स्थितं यदन्यानप्यूच्चैः शोपं निन्ये क्षमारुहः // 40 // अपृच्छन् साधवो नाथं युष्मच्छिष्योऽपि ढण्ढणः / हरेः सुतोऽप्युदाराढ्यजनायामपि पुर्ययम् // 41 // किमु बम्भ्रम्यमाणोऽपि भिक्षामात्रमपि क्वचित् / प्रभो ! न लभते लाभमन्येपामुपहन्ति च // 42 // युग्मम् // खाम्याचख्यौ मगधेषु ग्रामेऽसौ धान्यपूरके / राज्ञा व्यक्तीकृतोमात्सीत्परासर इति द्विजः // 43 // वर्षासु वापयन् ग्राम्यैर्नृपक्षेत्राणि सोऽन्यदा / प्राप्तेऽपि भक्ते भोक्तुं नामुचत्तानतिनिर्दयः॥४४॥ श्रान्त्या क्षुधा तृषा चात्तबलात्तै वृषभैरपि / क्षेत्रे स तत्र प्रत्येकं सीतामेकामचीकृपत् // 45 // कर्मत्थमान्तरायं सोऽजित्वा भ्रान्त्वा च संसृतौ / विष्णोः पुत्रो ढण्ढणोऽभूत्तत्कर्मास्याधुनोदगात् // 46 // येषां राज्ञां कृते मूढाः पापं कुर्वन्ति सेवकाः। ते तैरेवात्र दण्ड्यन्ते ही दुःखैः प्रेत्यपापजैः / / // 47 // श्रुत्वेति ढण्ढणसाधुः संवेगतः पुरः प्रभोः / आददेऽभिग्रहं यन्न भोक्ष्येऽहं परलब्धिजम् // 48 // परैर्लब्धमभुञ्जानस्तमलाभपरीपहम् / सहमानोऽनयत्कालं स कश्चन मुनीश्वरः // 49 // कोऽतिदःकरकृत्साधुष्विति पृष्टोऽथ शाङ्गिणा / टण्ढणं प्रभुराचख्यौ सोढाऽलाभपरीपहम् // 50 // अथ स्वामिनमानम्य प्रविशन् द्वारकां हरिः। तपाश्रीकङ्कणं वीक्ष्य ढण्ढणं गोचराग्रगम् // 51 // उत्तीर्य कुञ्जराद्भक्त्या प्राणमद्राजकुञ्जरः। ददर्श वन्द्यमानं च श्रेष्ठ्यकस्तेन तं पथि // 52 // युग्मम् / / विष्णोरप्यतिपूज्योऽयमिति गोमूत्रि| काक्रमात् / साधुः प्राप्ते गृहे तेन प्रत्यलाभि स मोदकैः // 53 // ढण्ढणो टुण्ढणकणानऽप्यलब्ध पुरा न यः। सोऽकस्मान्मोदकान् | लब्ध्वा स्वकर्मक्षीणमामृशन् // 54 // आगत्यालोच्य संदर्य मोदकान् पृष्टवान् जिनम् / लाभान्तरायः किं ? मेऽगात् क्षयं भिक्षां यदासदम् // 55 // युग्मम् / / जिनो जल्पन्न ते कात्रुट्यद् लब्धिस्त्वसौ हरेः / दृष्ट्वाऽमुं वन्दमानं यच्छ्रेष्ठी ते मोदकान् ददौ // सर्ग-१३ // 454 //
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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