________________ श्रीअमम जिनेशचरित्रम् / | राजीमती दिहस्वरूपम् // 436 // * तथाऽगात्कृशांग्यपि / यथा स्मरोऽस्यां धन्वाशां त्यक्त्वा मौर्वीस्पृहां व्यधात् // 38 // सौधमध्यात्सा गवाक्षं चकोराक्षी मुहुर्मुहुः। ययौ नेम्यागमालोककौतुकोत्तरलीकृता / / 39 / / क्रीडन्तीं तडितं मेघोत्संगरंगे विलोक्य सा। अभूदऽत्युत्सुका नेमेरंके शंके प्रखेलितुम् // 40 // इत्थं देवीव निर्निद्रा पद्मिनीव कथञ्चन / करग्रहोत्सुका भतुस्तां निशां साऽत्यवाहयत् // 41 // अथोदिते वावन्द्री कुंकुमस्तबकत्विपि / सौधादेत्य हरिमिमुद्रोढुं समवाहयन् // 42 // गोशीर्षचन्दनालेपछला दुग्धाभिना स्वयम् / पार्यमान इवोद्दामां शुद्धिमन्तबहिर्भवाम् // 43 // सर्वाङ्गमुक्तालंकारदिव्यवस्वसुमच्छलात् / आराध्यमानोऽलंकारवस्त्रपुष्पद्रुमैरिव // 44 // श्वेत|च्छत्रच्छलान्मूनि पार्श्वयोश्चामरच्छलात् / सेव्यमान इव स्वर्भूर्भुवगांगाभिरादरात् // 45 // आरूढः स्यन्दनं श्वेतवाजिनं दर्शयन् | जने / दिवापि नव्यपूर्णेन्दोवतीर्णस्य विभ्रमम् // 46 // तूर्याणां बन्दिनां चोच्चैर्धानमुखरयन्नभः / निवार्यमाणदृग्दोपो लवणो| तारणैः स्वसुः॥४७॥ महायशिविकारूढैः पृष्टे यदुवधूजनैः / विलासिनीजनैश्चाग्रे गीयमानगुणो भृशम् // 48 // पाचयो भुजामग्रे | कुमाराणां च कोटिभिः। पृष्ठे दशाहगोविन्दरामाययदुभिवृतः॥४९॥ आशास्यमानो वृद्धन वर्ण्यमानो नवेन तु / पौरस्रणेनोग्र| सेनगृहाग्रे नेमिरागमत् // 50 // अष्टभिः कु०॥ तूर्यनादैर्मेघनादेरिवोत्कों के किनीमिव / सख्यो राजिमती निन्युर्गवाक्षं तन्मनो| विदः / / 51 / / तारुण्यशिखिनो मन्ये कलापं कबरीमिषात् / दधाना कान्तसीमन्तमुक्तास्तोमज्छलाच्छिखाम् / / 12 / / बटुं प्रियमनो मत्तमतंगजमिवोन्नतम् / चान्दनं तिलकं भाले बिभ्रत्यालानवनवम् // 53 // भृगाकृष्टाकेतकाग्रदलद्रोणीसनाभिभिः / उत्तंसयन्ती | नयनैः कान्ताशां देवतामिव // 54 // अद्यापि सृष्टा सृष्ट्वा खं वपुः खण्डयतेन्दुना / अप्राप्तवृत्तसौन्दोल्लेखमाविभ्रती मुखम् / / 55 // भ्ररज्जुसंश्रयाद् भाग्यसौभाग्यनटयोरिव / नतितुं सजितं धात्रा नासावंशं दधत्यलम् // 56 // दिनकृयामिव स्वर्णकुण्डलाभ्यां सर्ग-१२ // 436 //