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________________ // 433 // गोपीनां जलक्रीडा वर्णनम् जित् // 82 // कृतप्रतिकृतश्रान्तः कान्ताभिः करनेत्रजैः / विष्णुजलैः सिच्यमानोऽप्यसेचनकतामधात् // 83 / / जनुचन्दनकर्पूरकस्तु* रीकुंकुमाञ्जनः / आत्तैः स्त्रीभ्यः पद्मवासा सरस्या श्रीयंभूष्यत // 84 // कृष्णसंकेतिकाः कान्ताश्चक्रुर्भामादयोऽखिलाः। जलकेलि-* च्छलात्कामकेलिं श्रीनेमिना सह // 85 / / गम्भीरप्रकृतिः स्वामी रेजे तासां स विभ्रमैः / प्लाव्यमानः पयःपूरैनंदीनामिव वारिधिः ||86 / / लावण्यवार्डों मन्येऽस्य लीने चक्षुषि मीनवत् / व्यापारयद् वारिधारा काचिद् बडिशसूत्रवद् // 87 / / कृत्वा तमेका झात्का-| | रिवारिशीकरदन्तुरम् / निन्ये सौभाग्यमम्भोधेस्ताम्रपर्णीविलासिनः // 88 // नेमे काप्यब्जिनीपत्रं चक्रवद् दक्षिणे करे / सिताज | शंखवद्दत्वाऽपरे भर्तुरदर्शयत् / / 89 // काचिच्चक्रेऽम्बुधाराभिर्नेमिनं धौतचन्दनम् / पुनस्तदन्या निर्मुष्टदन्तरुग्भिः सचन्दनम् // 10 // कान्ताकरप्रसृमरैर्वारिपूरैः स दिद्युते / अञ्जनाद्रिरिवोदारनिझरोद्गारभासुरः // 91 / / कान्ताभिः केलियुद्धाय भज्यमानेऽम्बुजाकरे / | दक्षाश्रीरभवत्पूर्वमेव यन्नेमिमाश्रयत् // 12 // मनोमुदे वरं त्यक्त्वा देवरं देव ! रंगतः / त्वामाश्रिताऽस्मि तत्क्रीड निर्दीडमतिः | काप्यऽशात् // 9 // नन्विमौ कलशौ धृत्वा कराभ्यां सिश्च मा स्वयम् / वल्लीमिवेति तं भग्याऽमार्गीकाप्यङ्गसंगमम् // 94 // दुर्गीकृत्य पुनः *कान्ता दाहाशंकी ध्रुवं स्मरः / वारिप्रहरणो भूत्वा तमीशमुपचक्रमे // 15 // कामिनीभिः प्रभुः कादम्बिनीभिरिख नीपवत् / सिक्तोऽपि | | वारिभिश्चित्रं तनौ नोत्फुल्लतां दधौ // 16 // नवः क्षणधरो नेमिः सिक्तोऽपि धनवारिभिः। अन्तर्नाभेदि यद्रोमांकुरं चाधाद् बहिनहि // 97 // कृतप्रतिकृतैर्धातुरनुवृत्त्या तु ताः स्वयम् / नेमिरक्रीडयत्प्रेमवतीः सर्वाः प्रजावतीः // 98 // इति तत्क्रीडया प्रीतस्तत्र स्थित्वा चिरं हरिः / निर्गत्य सप्रियस्तस्थौ तीरे राजमरालवत् // 19 // दन्तावल इव त्यक्त्वा सरसी नेमिरप्यथ। पालीवनालीं शिश्राय | // 433 //
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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