________________ // 425|| प्रभोः | ध्वनिरः प्रासरत् विष्टपत्रये // 32 // युग्मम् // शंखध्वानेन मृ लेनाऽप्याश्चर्यमकम्प्यत / भूमि मिधरैः सार्द्धमत्रास्यन्त च दिग्गजाः // 33 // चुचुम्ब कम्बुमुत्पाट्याऽङ्गजं मेऽद्य जगत्पतिः / इतीवाब्धिर्मदा गर्जा विश्वतर्जा व्यधाद मृशम् // 34 // युवत्यामिव | तन्वत्या द्वारवत्यां तदा मुदा / नाट्यभ्रमि गुरुर्वप्रः कम्प्रशीर्षास्ते सभ्यवत् // 35 / / हस्त्यश्वं बन्धनान्मुक्ति पूर्जनोऽप्यऽमनस्कताम् / लेभे चित्रं द्विधा च्छद्मस्थेनापि ध्वनिना प्रभोः // 36 / / जग्मतुः क्षोभमक्षोभावपि तौ सीरिशाङ्गिणौ / सयादवौ दवौघादप्याः श्रुत्वा तं भयंकरम् // 37 // त्रैलोक्यसंविभक्तेनाऽप्यहो क्षोभेण शाङ्गिणः / असमातेव हृदये निर्जग्मे वाग्मिपादिति // 38 // किमन्यद्वीपतो | विष्णुः शक्रो वा भोः किमागतम् ? / यन्मत्तोधिकप्राणः शंखध्वानः स्फुरत्ययम् // 39 // इति पर्यनुयुञ्जानः स शस्त्रागारयामिकः / एत्य व्याकरणाभिज्ञरेवं व्यज्ञाप्यतादृतैः // 40 // स्वामिन्नन्यद्वीपविष्णुः काऽलम्भूष्णुरिहागमे / निश्चिन्तश्च त्वयेवेन्द्रः स्वर्गेऽस्तीति ततः प्रभो // 41 // महाप्राणो महाप्राणस्थाने स्यादिति लक्षणात् / नेमिना वादितस्यैष त्वच्छंखस्य स्वनोऽस्फुरत् // 42 // युग्मम्।। श्रुत्वेति विस्मयं बिभ्रदपि वान्तेऽतिहर्षतः / मोहाद् विष्णुरधावत् यावत्तद्वाक्ये प्रत्ययं नहि // 43 // तावत्तत्प्रत्ययायेव नेमिस्तत्राऽगमत्स्वयम् / सावहित्थं च कृष्णेनाऽध्यास्य स्वासनमौज्यत // 44 // युग्मम् / / सम्प्रति मानटीनाट्यानन्दनान्दीकरवरः / प्रलयाऽब्दसखः शंखस्त्वया मेऽपूरि देव ! किम् ? // 45ii स्वामिनेवभिति प्रोक्त विश्वातिगवलं च तम् / विदन्नप्यऽविदत्कल्पः कृष्णः पुनरवोचत // 46 // शंख मदन्यैर्दुःपूरमापूर्यकमपूर्यत / त्वया मे कौतुकं भ्रातदोंयुद्धात्पूरयाऽपरम् // 47 // एवमस्त्विति तं नेमिरुक्त्वा नीत्वा खलूरिकाम् / मा पीडि मदलेनैष इति ध्यात्वा च मृद्वऽवक् // 48 // आवयोः कौतुकेनाऽपि न युक्तं | युद्धमुद्धतम् / मिथो दोर्बल्लिना तेनाधिगमोऽस्तु बलावधेः // 49 // ऊरीकृत्येति दोर्दण्डं वज्रदण्डमिवायतम् / दधे हरिस्तं च नेमि // 425 //