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________________ 62 // 423 // इत्याचार्यश्रीमुनिरत्नविरचिते श्रीअममस्वामिचरिते महाकाव्ये तुर्यभवे द्रौपदीप्रत्याहरण-सागरचन्द्राख्य बाणवधवर्णन-एकादशः सर्गः / / अ० 227 / / द्वादशः सर्गः। विवाहाय मातृपितृ कृताग्रहवि. *पये श्रीनेमे * 8 628488-* अथो विलसतो प्रेक्ष्य सार्द्धमन्तःपुरवः। राम कृष्णं च तत्पुत्रपौत्रांचोपवनादिषु // 1 // समुद्रविजयो राजा शिवा च प्रेम| संकुलैः। कोमलैर्वचनैरित्थं नेमिनाथमवोचताम् // 2 / / युग्मम् / / पश्यतोस्त्वां कलापूर्ण पुर्णेन्दुरिव वत्स ! नौ / नित्योऽस्ति हर्षः | क्षीरोदगंगयोरिव यद्यपि // 3 // तथाप्येष सविशेषः कान्ताः कुमुदिनीरिव / स्वीकृत्य क्रियतामात्मकरेणाऽमृतवर्षिणा // 4 // सारं त्रेधापि कौमारं पुण्यतारुण्यवानिह / इत्थं बिभ्रदऽदभ्रं तु हृदि शल्यं ददासि नौ // 5 // ऊचे नेमिरपि ज्ञानत्रयीयुक्तोंऽशुमानिव / भवप्राप्तावतारोऽपि भवोद्विग्नोऽतिकौतुकम् // 6 // द्रक्ष्यामि पितरौ ! स्वानुरूपाः कान्ता यदा तदा / स्वीकरिष्ये ध्रुवं मास खियेथा हृदि सर्वथा // 7 // स्वीकृत्याऽननुरूपास्तु त्वष्ट्रपुत्रीवदात्मनि / दुःखं करिष्ये नो नित्यं क्षयाद् दुःप्राप्ततेजसः // 8 // स्वभावसरलावे विवाहारम्भसाग्रहौ / अबोधयत्स्वपितरौ नेमिगम्भीरया गिरा // 9 // इतश्च स यशोमत्या जीवश्युत्वाऽपराजितात् / उग्रसेनगृहिण्या: | श्रीधारिण्यास्तनयाऽजनि॥१०॥ राजीमतीति सा वाला पितृभ्यां कल्पिताभिधा / ववृधे कल्पवल्लीव सुखं सर्वांगसुन्दरा // 11 // त्यजन्ती मौढ्यमधुरं शैशवं सा क्रमादगात् / प्रौढतामिन्दुलेखेव स्वीकुर्वाणाऽखिलाः कलाः॥१२॥ एकैव यौवनकला सकला तत्क ***4882282*18-24838*888 // 423 // -*
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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