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________________ श्रीअमम // 416 // *प्रणेशुम॑गवत्केचित् परे रंका इवारटन् / / 97 // त्यक्तवीरव्रताःक्ष्मापवीराः कीरा इव द्रुतम् / उड्डीय सिंहनादेन नृसिंहस्येति दुद्रुवुः जिनेश // 98 // सच्चकै राजहंसश्चाऽवरोधालिगणैरपि / पाठीनैश्चाभ्यधायीदं पद्मः स करुणाक्षरम् / / 99 / / स्वामिन् ! कि? भञ्जयस्येवं स्वपुरी चरित्रम् / सरसीमिव / किमुन्मूलयसि ख च नरसिंहेन सम्प्रति // 100 // त्वया दुर्दैववातेनाऽपहार्य द्रुपदात्मजा / यत्स्वीचक्रे हिमानीवाऽ जीवितार्थी ज्ञानतः स्वविनाशिनी // 12 // अविमर्शविधायित्वं तदेकमभवत् पुरा / द्वैतीयीकं च तद्द्तस्यार्पिता मागिता न यत् // 2 // तार्तीयीकं * पद्मो राजा पतितः तु मा कार्षीः स्वराज्यप्राणनाशनम् / प्रत्यप्येतां ततः कृत्यां कृत्यज्ञ क्षेमभाग्भव // 3 // सीतामनपर्यन् लेभे राज्यप्राणकुलक्षयम् / कृष्णचरणदशकण्ठः कुण्ठबुद्धिविपदं कां न चाऽश्नुते ? // 4 // च० कु० // श्रुत्वेति पद्मो निश्छद्मोदितं तैर्भयभंगुरः / द्रौपदी शरणीकृत्याऽश- | योरपिता रण्यः प्रोचिवानिति // 5 // देवि ! क्षमस्व मेऽवज्ञामज्ञानस्य क्षमानिधे!। माताऽसि रक्ष रक्षाऽस्मात् ततः पुरुषसिंहतः॥६॥ साऽ- द्रौपदी | वादीत् स्त्रीवपुर्भूत्वा कृत्वा मां च त्वमग्रतः। नृसिंहं शरणं याहि जिजीविषसि चेन्नृप / / 7 / / पद्मोऽप्यथ तथाकृत्वा गत्वा नत्वा | जनार्दनम् / द्रौपदीमुपदीकृत्य प्राञ्जलिः प्रोचिवानिति // 8 // अज्ञानाद् यदिवा देवाद् भवद्भन्धुवधूमिमाम् / स्वामिन्नहृदयोऽहार्ष राहुरिन्दुतनूमिव // 9 // अखण्डवृत्तां तामेतां गृहाणाऽनुगृहाण माम् / पृष्ठे प्रयच्छ मे पाणिं वाणिं चाभयलग्नकम् // 10 // कृष्णोऽप्यकृष्णवद् त्रस्तमाश्वास्याऽभयदानतः / भूयोऽप्यमरकंकायां स्वकीर्तिस्तम्भवन्न्यधात् // 11 // समर्प्य पाण्डुपुत्राणां द्रौपदी वसुदेवभूः / तैः सार्धं वाद्धिमार्गेण ववले द्वारकां प्रति // 12 // तद्वीपचम्पोद्याने च पूर्णभद्राभिधे तदा / विहरबागमत् तीर्थकरः श्रीमु // 416 // | निसुव्रतः // 13 / / तद्वीपविष्णुः कपिलाभिधस्तं सदसि स्थितम् / पप्रच्छ शंखः कस्याऽयं ममेव श्रूयते ध्वनन् // 14 // जम्बुद्वीपकृष्णविष्णोः शंखध्वानोऽयमित्यमुम् / शंसन्तं कपिलो प्राक्षीत्स्यातामेकत्र किं ? हरी // 15 // वृत्तान्ते द्रौपदीकृष्णपद्मानां श्रीमद सग-११
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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