________________ // 413 / / तानित्युक्त्वा ससैन्योऽथ जगाम वरदामनि / दक्षिणाब्धेस्तटे वैरिदक्षिणापतिरच्युतः // 41 // तत्रोचे पाण्डवैः कृष्णः स्वामिन् ! फेना-* दृहासभृत् / वार्डी रौरवानलवाले रक्षोवत्क्षोभयत्ययम् // 42 // महामीनपीनपृष्ठोच्छालसैवालकोटरे। भूभृद्भिः स्थीयते लीनरिन्द्र- द्रौपद्यानयवज्रभयादिह // 43 / / अस्मिन्नभ्रंलिहोल्लोलविलोलद्भूभृतामपि / ग्रासैकग्रहिलैलशकुलैरपि वल्ल्यते // 44 // वेलन्धराः सुराश्चात्र | नार्थ *सुस्थितदे| धीवरा इव पीवराः / अगाधे वारिसम्बाधे भ्राम्यन्तो भीतयेऽभितः॥४५।। इहोमिवमितैयोमगत्वरजलकुञ्जरैः। विलोप्यन्ते घनघ वाराधनया टा गर्जगजघटा इव / / 46 / / वाताः संवर्तकाश्चास्मात्स्फुरन्ति भयहेतवे / हेलयोच्छलितात्युच्चचंचन्मकरकेतवः // 47 // मापिंडकुण्ड सपाण्डुपुत्रलीभृतभोगिभोगाकृतिस्थितिः / वेगात्तालैर्विषोच्छालैरयं दत्ते भयं भृशम् // 48 // कृष्णस्यामखांगे भरं हरं चायं विपस्याहनिशं दधत् / मन्ये मांत्रिकवत्सत्यं विषपीयूषयोजनिः॥४९॥ दुर्लध्यस्तदयं देवैरपि मत्यैस्तु | रकंकागका कथा / युगक्षयक्षणारम्भप्रवणो लवणोदधिः॥५०॥ नवभिः कु० // चिन्तां मुञ्चत वीक्षध्वमित्युक्त्वा पाण्डवान्हरिः। तपसाऽऽ मनम् | राधयामास तीरस्थः सुस्थितं सुरम् // 51 // स प्रत्यक्षोऽवदत्देव ! समादिश करोमि किम् ? | कृष्णोऽप्याख्यत पझेन धातकीखण्डवासिना // 52 // हृताऽस्ति भृभुजा भ्रातृजाया मे द्रौपदी च्छलात् / तामानये यथा शीघ्रं समुद्रेश ! तथा कुरु // 53 // युग्मम् // जगाद सुस्थितो हृत्वा सुरः प्राग्लौल्यतो यथा / पद्मस्याऽढौकयत्कृष्णां तथाऽहमपि तेऽपये // 54 // यद्वा क्षिप्वाऽम्वुधौ पद्म ससैन्यमपि ते रिपुम् / पाञ्चालीमर्पये नाथ ! मामाज्ञापय किंकरम् // 55 // विष्णुर्जगाद मा मैत्रं का मार्ग त्वनर्गलम् / रथपदकस्य तोयान्तः पाण्डवैः सह देहि मे // 56 // तत्र गत्वा स्वयं जित्वा तं वराकं रणे यथा / कृष्णां गृहीत्वाऽऽगच्छामो वयं वीरक्रमो ह्ययम् // 413 // // 57 // तथाकृते सुस्थितेन विष्णुः पाण्डुसुतैः सह / योगीवाऽब्धि स्थलीभूतमुल्ललंधे रथैः क्षणात् // 58 // गत्वा चामरकंकायां बहिः