________________ श्रीअममतर्भुव मयका साई भोगान् देवी द्विधा भव // 22 // द्विपेऽस्मिन् धातकीखण्डेऽमरकंकाभिधा पुरी / राजाऽस्यां पद्मनाभोऽहं भावी P|| जिनेशसम्प्रति ते पतिः॥२३।। भूतानामिव भतॄणां पञ्चानां हन्त गोचरे। क्षिप्ता दुर्विधिनाऽऽकर्षमबलां त्वामहं भटः॥२४॥ सौभागिनेयि! चरित्रम् / तन्मुश्च सहजामपि भीरुताम् / भजस्व मामिवानन्दममन्दमुदितोदितम् / / 25 / / कृतप्रतिकृतं ज्ञात्वा नारदस्यात्मनि स्फुटम् / मखा- // 412 // ical धातकीखंऽनुपदिनो भनन् स्वान् कृष्णबलतो ध्रुवम् / / 26 / / भोगाप्तिः स्यात्प्रतिभवं भोगीन्द्रस्येव देहिनः। सुधालील पुनः शीलं न क्वापि | डीय पद्मसुकृतेविना // 27 // शीलरत्नं ततो रक्ष्यममुष्मात्पश्यतोहरात् / अयं तु मृो विश्वास्यो रागान्धीकृत्य सद्विरा // 28 // ध्यात्वेति | प्रार्थिता द्रौपदी प्रोचे राजन् ! मासान्तरे यदि / कश्चिन्मदीयो नागन्ता प्रपत्स्ये खां तदा पतिम् // 29 // युग्मम् / / जम्बुद्वीपभुवामत्रागमनं द्रौपदीम हासतीछद्मपक्षिणामपि / असम्भाव्यं मनुष्याणां निःपक्षाणां तु का कथा ? // 30 // विचिन्त्येति च्छद्मसापद्मनाभः स्वचेतसि / एवमस्त्विति वचनम् तद्वाचं मेने ज्ञान व कामिनाम् // 31 // द्रौपद्यपि सतीचूडामणिरभ्यग्रहीदिति / मासान्तेऽपि न भोक्तव्यमदृष्ट्वा पाण्डवान्मया / 32 / पाण्डपुत्रा अपि प्रातरदृष्ट्वा द्रौपदी गृहे / अन्विष्यन्ति स्म सर्वत्र शैलोद्यानादिकेष्वपि // 33 // दूरेऽस्त्वस्याः पदमुद्रा वार्तापि प्रापि के तैनहि / गृहीतानामनिमिपैरुपलब्धिः पुनः क्व ? तु // 34 // निजबन्धोः शरण्यस्य गत्वाऽऽख्युस्तेऽथ शाङ्गिणः / प्रेयस्याः प्रियस-1 ख्येव ब्रीडयाऽपि रुपोज्जिताः // 35 // प्रौढोऽपि कृत्यमूढोऽस्थाद्यावत्कृष्णः क्षणं तदा। स्वकृतं नारदस्तावदऽन) द्रष्टुमागमत् // 36 / / सोऽशंसद् द्रौपदीशुद्धिं पृष्टः सत्कृत्य विष्णुना / यथाऽहं धातकीखण्डेऽमरकंकापुरीमगाम् // 37 // अद्राक्षं द्रौपदी पद्मनृपसद्मनि तत्र सर्ग-११ च / इत्युक्त्वा पारद इबोडीयाऽगात्स क्वचित्ततः // 38 // युग्मम् / / उवाच पाण्डवान् कृष्णोऽनथोंऽयं वोऽमुना ध्रुवम् / असत्कृतेन // 412 // Hद्रौपद्या चके क्रोधकसमना // 39 // प्रत्यानेष्ये तथाप्येतां खिद्यध्वं मा स्म किश्चन / सवराको न मे दुरे भूरेणुर्मरुतो यथा // 40 //