________________ // 409 // प्रवेशे नगरस्त्रीणां चेष्टा पप्रकरस्फुर गीरुतैस्ततैः। आकृष्य वाहनमृगं स्थापयन्ती सदागतिम् // 9 // प्रतिस्थानं स्वस्तिकौघमुक्तमुक्तारुचिच्छलात् / हसन्ती* मिव देवानां पुरीं संक्रन्दनाधिपाम् // 10 // शुभेऽन्हि प्राविशत्कृष्णो द्वारका द्वारकान्तिभिः / नानामणिगणोत्थाभिः सूत्रितानेकतो- रणाम् // 11 // पं० कु०॥ प्रतिमञ्च सप्रपञ्च वेश्याभिर्विहितं सच / कर्पूरारात्रिकं मार्ग प्रत्यैच्छद् बन्दिभिः स्तुतः / / 12 / / जगद्विजयिनस्तस्य प्रवेशोत्स|वमीक्षितुम् / प्राप्तानां पौरनारीणामित्यवल्गि विचेष्टितैः // 13 // काचित्तालीदलं कर्णस्थितं प्रेर्य मुखानिलैः / मन्ये ददौ खवैदग्ध्ये *पत्रं प्रौढांगनाविव // 14 // कृष्णे स्ववीक्षानिस्तृष्णे हीनमत्कन्धरा परा। धन्वाक्रष्टुमिवाघ्याचत् स्मरं हृद्वेश्मवासिनम् // 15 // | उच्छलन्ती क्वणत्काञ्चीकिंकिणीमणिकंकणम् / कृष्णेक्षिता च वैदग्ध्याऽभृद् गोंडुरा परा // 16 // उच्चर्मश्चेऽधिरूढापि काचिन्न्यश्च|न्मुखी हरिम् / स्वकण्ठात्पेतुषा पुष्पदाम्नाऽभ्याऽलपत्तराम् // 17 // केलिहंसैरनुगम्यमानैका वेगगामिनी। कृष्णं दृष्ट्वा हंसगति मुमोचाशु भयादिव // 18 // पद्मरागगवाक्षस्था शशिगौरी स्वमाख्यत / काचित् क्षीराहूतीभूतं कृष्णस्य विरहानले // 19 // श्वश्रू मुहुः | कठोरोक्त्या वारयन्ती च पृष्ठतः / काचिन्नाजीगणन्मत्ता हस्तिनीवांकुशस्थितिम् / / 20 // पश्यन्निति पुरणलीलाः शाङ्गधरः क्रमात् / | प्रासादमासदत् स्वस्य वारस्त्रीक्लुप्तमंगलः // 21 // तत्राऽमरैः खेचरैश्च भक्तिभाग्भिनरेश्वरैः। विष्णोचक्रे चक्रितसाऽभिषेकमहोत्सवः | // 22 // अश्वभरत्नाभरणस्वर्णाद्यैस्तस्य वस्तुभिः / स्वराज्यसारैः सर्वेऽपि मांगलिक्यानि निर्ममुः।।२३।। स्वस्वस्थानाय सत्कृत्य सुरान् विद्याधरान्नृपान् / व्यस्राक्षीत् पाण्डुपुत्रांश्च कुरुदेशाय केशवः॥२४॥ वनमाला मणिः खङ्गः शंखश्चक्रं धनुर्गदा / अभूवनिति रत्नानि सप्त तस्याऽर्द्धचक्रिणः // 25 // सदांगरक्षादक्षाणां यक्षाणां चान्तिकस्थिताः / अष्टौ सहस्राः कृष्णस्य सेवांचक्रुः पदातिवत् // 26 // // 409 //