________________ जिनेशचरित्रम् / जरासन्ध कृष्णयो श्रीअमम नीते सांमुख्यं परसैनिकैः // 13 // विष्णोरेव प्रतिविष्णुर्धात्यः स्थितिमिति स्मरन् / स्वामी न त्रिजगद्वीरोऽप्यवधीन्मगधाधिपम्॥१४॥ | रथभ्रममिपान्मन्ये स्वाज्ञारेखां प्रभुः स्वयम् / स्तम्भाय परसैन्यानां रणोर्त्यां केवलं ददौ // 15 // महाबलस्य श्रीनेमेः साहाय्येन // 404 // यदुबजः। मारुतस्येव दावाग्निः पुनरुत्साहमासदत् / / 16 // स्फुरत्सवोत्कटाश्चक्रुयुद्धं यदुभटाः पुनः / मगधाधीश्वरबलैः सहाऽप्रति- | बलैरपि / / 17 / / तदाऽन्विष्यान्विष्य पाण्डुतनुजैः कौरवा रणे। वने दुमा इवामूलादुदमूल्यन्त कुञ्जरैः॥१८॥ श्रीनेमेरुपचारेणायुविदोऽथ बलं बलः / लब्ध्वा व्यरीरमदऽरीन् दीपानिव समीरणः // 19 // जरासन्धबलाम्भोधिर्यदुपोतान्तरेऽखिलः। यदेत्य मनः श्रीनेमेयोंगिनस्तद्विजम्भितम् // 20 // परिग्रहाद् बलवतां क्रमते विश्वविग्रहे / अल्पोऽपि वातोद्धृतो यत् पांशुर्विश्वदृगान्ध्यकृत् // 21] स्वेषां बहूनां वीराणां तनूजानां च संक्षयम् / बीक्ष्य क्रुद्धो जरासन्धो जगादेति जनार्दनम् // 22 // शौर्यलक्ष्मीनाव्यशिक्षाभृकुंसः SE] कंसभूपतिः। मल्लकौतूहलं पश्यन्नरे जध्ने त्वया च्छलात् // 23 // उत्फाले सिंहवत्काले युद्धोत्तालेऽनुचेलुपि / नष्ट्वा खं रक्षितुमगास्वं वार्द्धिपरिखां पुरीम् // 24 // रेरे गोपाल तद्वाल भृगाल इव केवलम् / भृरिमायोऽसि न पुनर्विहितास्त्रपरिश्रमः // 25 // नूनं देवेन | रुष्टेन पत्रमुत्क्षिप्तमद्य ते / त्यक्त्वा यदैवताद्रिं त्वमत्रागाः पुरतो मम // 26 // तब्रूहि कुक्षौ निक्षिप्तः कस्यां कंसस्वयाऽस्ति रे। तमाकृष्य जीवयशःप्रतिज्ञा पूरये यथा // 27 // सित्वा प्रत्यवदत्कृष्णः सतृष्णस्वं रणेऽसि चेत् / तदेहि शिक्षये तं त्वामहं शास्त्रज्ञ*मप्यहो // 28 // मया प्राग्मृगधूतन कंस कुम्भीव कौतुकम् / हत्वाऽस्ति दक्षिणे कुक्षौ क्षिप्तो जीर्णश्च कोलवत् // 29 // करिष्यतेऽधुना वामकुक्षेः शून्यस्य पूरणः। कुरंगेन्द्रो भवान्मत्तमातंगैकविदारणः // 30 // त्वद्वत्स्वश्लाघनो नाऽस्मि किन्तु त्वं पूरयिष्यसे / पुत्र्याः | प्रतिज्ञा मत्वगधारातीर्थनिषेवणात् // 31 / / अलं विलम्ब्य ढौकस्व पितृमातुर्जनस्य च / पुन्याश्च सार्थ एकोस्तु कुटुम्बस्याऽवियोग // 40 //