________________ श्रीअमम जिनेशचरित्रम् / पेषिता बलकृष्णाभ्यां जरासन्ध // 402 // पुत्राः निश्चितम् / द्वेधापि संगरे भंगरेखा येषां न तेऽल्पकाः // 75 // हरेगिरा किरातस्य हक्कयेव मृगाधिपः / विद्धो मर्माविधा तीक्ष्णयाणादप्यधिकं हृदि // 76 // चेदीश्वरः करखद्धनुर्मुक्तैः शरोत्करैः। कृष्णे वृष्टिं व्यधाद् धारासारैर्वा विवाम्बुदः // 77 // युग्मम् / / * कृष्णेन प्रहितदिव्यैविशिखैः सपरिव / धनुर्वर्मरथान् छित्त्वा शिशु वन्नमुच्यत // 78 // स विद्रवन् पुनः खड्गं कृष्ट्वाऽढौकत विप्लवे। उद्धृमलेखः प्रलयकालानल इव जलन् // 79 // कृष्णोऽप्यलावीत्तस्याऽसिमसिना मुकुटं तथा। शिरश्च कुम्भकृत्कुम्भं चक्रस्थमिव | तन्तुना 80 // निजमूर्त्यन्तरे तस्मिंश्चम्पे हरिणा हते / क्रुधाऽधावजरासन्धः सामन्तः स्वसुतेः सह / / 81 // ऊचे मुधा मृधे कि रे | म्रियध्वे यदवो जवात् / समाऽद्यापि तौ गौपौ चिरं जीवत किं ? परैः / / 82 // यदुभिस्तद्विरा भस्त्रयेवेद्धक्रोधवन्हिभिः। दग्धं | भ्राष्ट्रैरिवोल्से जरासन्धमयो दृढम् // 83 // विध्यापयितुमेतांश्च स दोयोमाग्रजाग्रतम् / प्रौढं व्यापारयद् धाराधरं जलभरोद्धरम् 84 // मुष्टिग्राह्यस्य तस्यान्तनि म सलिलेऽद्भुतम् / मक्तुमारभताऽश्वेभवाहिनी यदुवाहिनी // 85 / / यदुवीरास्तत्र धीरा अपि सद्धीवरा अपि / दधुः काष्ठाश्रयश्रद्धामाश्चर्य दोबलोद्धताः // 86 // कृते यदूनां दनांगै टैः शौर्योत्कटैरपि। रणे मेपापसरणे जरासन्धतनूद्भवैः // 87 / / निहन्तुमष्टाविंशत्या दधावे सीरधारिणम् / कृष्णं चकोनसप्तत्या स्फुङनिस्वादनिस्वनैः // 8 // युग्मम् // तयोर्वीरशिरोमण्योस्तैः सार्द्ध युद्धमापतत् / तद्यस्मिन् शस्त्रसंघातघातान्नेशे सुरैरपि / / 89 // बलोऽष्टाविंशतिं कृष्ट्वा हलेन मुशलेन तान् / पिपेप कणवत्पुत्रान् जरासन्धस्य हेलया // 90 // उपेक्ष्यमाणो गोपोऽयं हन्त्यद्यापीति जल्पता / जरासन्धनात्मपुत्रवधरोपान्धचक्षुपा // 11 // आहतो गदया रक्तं वमन् रामोऽपतद् भुवि / चक्रे हाहारवो देवेदिवि क्षोणौ च यादवः // 92 / युग्मम् // पुनले जरासन्धं घातसन्धं विदस्तदा / कुन्तिसुतो ऽन्तराऽभ्येत्य श्वेताश्वोऽयोधयल्लघु // 93 // भ्रातरं विधुरं प्रेक्ष्य प्रज्वलत्कृष्णवर्त्मवत् / कृष्णोऽभैत्सीज सर्ग-१० // 402 //