________________ // 397 // *च शकुनिपः // 78|| दुर्मर्षणाद्याः पद् भूपा द्रौपदेयान् ससत्यकान् / बलदेवात्मजांश्चान्येऽयोधयन्नवनीभुजः // 79 // युग्मम् // * *किरीटी मार्गणांस्तेषां दानैः सममवर्द्धयत् / रसानामिव शराणां निजानां लक्षवेधिनाम् / / 80 // दुर्योधनोऽथ विरथवर्मा पार्थशरैः | कृतः / उत्पत्य भेजे शकुनिरथं शकुनिवजवात् / / 8 / / धारासाररिखाम्भोदः पद्मान् पार्थःशरोत्करैः / / बभञ्ज क्ष्माभुजः काशीशादींश्चैकोऽप्यथो दश // 82 // कृत्तं शल्येषुणा वीक्ष्य धर्मस् | स्वरथध्वजम् / कराविवाऽच्छिनत् तस्य बाणवाणासनौ समम्।।८३।। गृहीत्वाऽन्यद्धनुः शल्यो तुल्यो युधि युधिष्ठिरम् / तिरोधत्त शरै* द्यो नीहारैरिव भास्करम् / / 84 // कौन्तेयोऽपि द्विधा शक्त्या द्वेधा शल्यं निजनिवान् / वज्री वज्रविषेवाद्रिमनेशन भूभृतः परे * // 85 / / उरो दुरोदरच्छद्माऽनूद्य सद्यो वृकोदरः / हतस्य गदया दुःशासनस्योच्चैय॑दारयत् // 86 // युद्धस्य शकुने नायुद्धैर्गान्धारभूपतेः / सहदेवोऽमुचत् क्रोधान्मार्गण प्राणमार्गणम् // 87 // तमन्तरा निपत्याशु विलुप्य क्षत्रियव्रतम् / दुर्योधनं संलुनानमुच्चैर्माद्रीसुतोऽवदत् // 88|| द्यूते लब्धच्छलास्वादं धिक् त्वां क्षत्रव्रतोज्झनम् / हीनो यः श्वेव युद्धेऽपि तत्प्रयुक्त जयाशया // 89 / / सर्वेऽपि न खलु स्वमाः सिद्धिदाः स्युरतो युवाम् / साधु गोमायुवन्मायाविनौ मे वध्यतां श्रितौ // 90 // आक्षिप्येति प्यधत्तैनं स यावद्दुद्धरै : शरैः / तावत्तस्याऽच्छिदच्छेको बाणैदुर्योधनो धनुः // 91 // सहदेवाय नागावं पुनर्दुर्योधनेरितम् / अन्तरा गारुडास्त्रेण सव्यसाची न्यवारयत // 92 // वेगादुत्कुजताऽऽगत्य सहदेवकरात्ततः / अकर्ति शकुनेः शीर्ष श्येनेनेव पतत्रिणा / / 93 // विद्रावितो नकुलेनाऽप्यूलूकस्त पनविषा / भेजे दुर्मर्षणं त्राणं स्वस्य क्षोणिभृतां वरम् // 94 // दुर्मर्षणाद्याः षडपि ऋतुबद् भूमिनायकाः / निरासिरे द्रौपदेयैः प्रलया- * करिव क्षितेः // 95 // दुर्योधनोऽपि काशीशप्रमुखैः सह नायकैः / घनं धनञ्जयं हन्तुमनाः पुनरढौकत // 96 // बलात्मजैरज्जुनोऽपि // 397 //