________________ // 387 // प्राञ्जलिः प्रोचिवानिति // 98 // बालचापलतः प्रोक्तमेतदज्ञानतोऽपि च / क्षम्यतां पूज्यपादैर्मे त्रिजगत्पूज्य ! सद्गुणः // 19 // व काचः *कच माणिक्यं ? क्क रीतिः क्व य काञ्चनम् ? / लोकोत्तरगुणस्तातः क नु ? काऽहं ? गुणोज्झितः // 700 // एवं पितामहं भक्त्या क्षमयित्वा प्रणम्य च / शाम्बो ययौ निजावासं सुखेनास्थाच्च सप्रियः // 1 // इत्थं क्षमाभृत्खचरेन्द्रपुत्रीय॒द्याऽभवत् सन्ततिवृद्धि| रम्यः / पितेव सौभाग्यगुणेन विष्णुः सन्तः प्रभावं तपसां विदन्तु // 2 // अममचरिते भाविन्येवं तयोः सह जन्मनोबलहरिभवे राज्यं | पुर्या लघुर्गुणगौरवात् / सुरपतिरिव स्वर्गेऽष्टाभिः प्रियाभिरभिश्रितो व्यधित तनूजैः प्रौढैः प्रीतः सुखमगमयत्समाः॥३॥ इत्याचार्यश्रीमुनिरत्नविरचिते श्रीअममस्वामिचरिते महाकाव्ये तुर्यभवे रुक्मिण्यादिपरिणयन-पाण्डवद्रौपदीस्वयंवर-प्रद्युम्न शाम्बचरितवर्णनो-नवमः सर्गः॥ 60 706 // दशमः सर्गः / वणिजपार्श्वे द्वारकोन्नति श्रुत्वा जीवयशसः परमखेदः इतश्च यवनद्वीपाद् वणिजः पोतवम॑ना / द्वारकामेत्य पण्यानि विक्रीयाऽन्यानि लाभतः॥१॥ जग्मुर्विशेषलाभाय विक्रेतुं रत्नकम्बलान् / पुरे राजगृहेऽग्रण्यानीता जीवयशोन्तिके // 2 // लक्ष्यार्दै कम्बलानां च तया मूल्यं स्वयंकृते / पूचक्रुर्वणिजो मुक्त्वा द्वारका *हा किमागताः ? // 3 // तत्र ोते लभन्ते स लक्ष्यं तसाद् घनं ननु / लिप्सवोऽत्र समायाता नाशस्तस्यापि हाऽभवत् // 4 // का द्वारका पुरी ? कश्च ? सम्प्रति भूपतिः। जीवयशसेत्युक्ताःप्रोचुः कम्बलवाणिजाः // 5 // द्वारकाऽस्ति पुरी वाधिंदत्ते स्थाने कृता // 387 //