________________ मुक्तावली // 2 // अथ प्रथमो धर्मवर्गः प्रारभ्यते / १-तत्र देव-तत्त्व-विषये मालिनीछन्दसिसकल करम वारी मोक्षमार्गाधिकारी, त्रिभुवन उपकारी केवलज्ञानधारी / भविजन नित सेवो देव ए भक्तिभावे, इहिज जिन भजतां सर्व संपत्ति आवे // 3 // भो भव्याः! सकलकर्म-वारको मुक्ति-मार्गमधिगतः, त्रिभुवनोपकारकः केवलज्ञानधारको, जिनेन्द्रो भक्तिमरितमानसैभवद्भिः नित्य सेव्यताम् / यतोऽर्हद्भक्तैरत्रैव सर्वसंपत्तिरवाप्यते // 3 // जिनवर पद सेवा सर्वसंपत्ति दाई, निशदिन सुखदाई कल्पवल्ली सहाई / नमि विनमि लहीजे सर्व विद्या बड़ाई, ऋषभ जिनह सेवा साधतां तेह पाई // 4 // जिनचरणकमलसेवा सर्वो समृद्धि ददाति, अहर्निशं कल्पलतेव सर्व सौख्यश्च प्रयच्छति, यथा नमिर्विनमियादिनाथभक्त्या सकलविद्यानिष्णातावभूताम् // 4 // // //