SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ O अर्थवर्गः 2 मुखावली॥८९॥ पुरा वनगमनकाले रामचन्द्रो-धर्मबुद्धया कुलगुरु वशिष्ठं प्रणमन्तुकामस्तदाश्रममाययो / शिष्येण तदागमने निवेदिते वशिष्ठ उवाच |कियत्परिवारैरागतोऽस्ति रामचन्द्रा? शिष्योऽवक्-एकाक्येव / तदाकर्ण्य तस्य भाषणदर्शनादिदानं विनैव गुरुानमन्दिर प्राविशत् / इत्थं तं निधनं विदित्वा कुलगुरूप्युपेक्षितवान् रामचन्द्रोऽपि तदभिप्राय जानन परावर्तमानोऽग्रे चचाल / अतोऽस्मिन संसारे लक्ष्मी विना कोऽपि कुत्रापि नैव सत्कृति सुकीर्तिश्च लभते। यतो लक्ष्मीप्रभावोऽप्येवं नीतिशास्त्रे प्रदर्शितःवारांराशिरसौ प्रसूय भक्ती रत्नाकरत्वं गतो, लक्ष्मि ! त्वत्पतिभावमेत्य मुरजिजातस्त्रिलोकीपतिः कन्दो जनचित्तरञ्जन इति त्वन्नन्दनत्वादभूत, सर्वत्र स्वदनुग्रहप्रणयिनी मन्ये महत्त्वस्थितिः // 5 // हरिसुत रति-रंगे जे रमे रात सारी, शिवतनय कुमारो ब्रह्मपुत्री कुमारी। हित करि दृगलीला जेहने लक्ष्मी जोवे, सकल सुख लहे सो सोहि विख्यात होवे // 5 // यथा-हरिसुतो-जयन्तोऽनंगो वा धनं धनं ददानो रत्या सह रेमे। शिवसुतो गणेशः कार्तिकेयो वा ब्रह्मपुत्रीमसेवत प्रचुरतरलक्ष्मीप्रदानतः / यतो धनवाञ्जनः सदैव लक्ष्म्यनुभावतः सर्वसुखमश्नुते / लक्ष्मीकटाक्षवीक्षितोऽपि जनः सर्वत्र प्रख्यातिमेति / अतः सम्पदेव सर्वेषां सदैव सुखकारिणी संसारे सर्वैर्जनैर्विज्ञेया // 5 // लखमि पल यशोदा नंदने विश्व मोहे, लखमि विण विरूपी शंभु भिक्षु न सोहे। लखमि लहिय रांके जे शिलादित्य भंज्यो, लखमि लहिय शाके विक्रमे विश्व रेज्यो // 6 // BC- 3SOMSANSARS 15 // 89 //
SR No.600398
Book TitleSukta Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri, Gulabvijay Upadhyay
PublisherBhupendrasuri Jain Sahitya Samiti
Publication Year1940
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy