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गच्छा
चार
॥६६॥
तह पूयं । काऊण दइयकारिय-निक्खमणमहुस्सवुक्करिसा ॥ ८८ ॥ गंतूण अन्नियाय - गगहरपासम्मि पुप्फचूला सा । पडिवज्जइ पचज्जं, बीयं पिव मुक्खरुक्खस्स ॥ ८९ ॥ गहणासेवणसिक्खं, सम्मं सा सिक्खिउं महादक्खा। संजाया गुरुयाणं, संगो हि गुणावहो होइ ॥ ९० ॥ अह नाणेणं नाउं, बारससंवच्छराइ दुब्भिक्खं । अन्नियउत्तायरिओ, गच्छं पर जंपए एवं ॥ ९१ ॥ वच्छ ! गच्छह तुम्मे, दुब्भिक्खाओ सुभिक्खदेसेसु । जंघावलपरिखीणा, चिट्ठिस्सामो इहेवम्हे ॥ ९२ ॥ पुहवितललुलियसीसा, सीसावि भणति नेरिस जुत्तं । तुम्ह पयप उममूलं, मुत्तुं अम्हाण पुण गमणं ॥ ९३ ॥ तो नमिय पुप्फचूला, विभव गुरुं मुणिंद ! तुम्हाणं । पुन्नोदएण लद्धं, सुरसुसमहं करिस्सामि ॥ ९४ ॥ उस्सग्गघवायविऊ, अणुचिमवि ती साहुणिइ गिरं । पडिवज्जिऊण गच्छं, सुभिक्खदेसंमि पट्ठवइ ॥ ९५ ॥ अह पुप्फचूल अंते - उराउ गहिऊण सुद्धमाहारं । वियरेइ पुप्फचूला, गुरूण परमाइ भत्तीए ॥ ९६ ॥ एवं सया गुरूणं, एगम्गमणेण सा परमभचि । कुणमाणा सुहझाणा, पावइ वरकेवलं नाणं ॥ ९७ ॥ सा जायकेवला वि हु, वैयावच्चं विसेसओ गुरुणो । आगमभणियं अत्यं, सच्चवयंती विणिम्मेइ ॥ ९८ ॥ जो जस्स य जारिसयं, पुछि भतिं कुर्णतओ होइ । सो तस्स तारिसं चिय, कुणेइ जा नज्जइ न नाणी ॥ ९९ नाणेण सा गुरूणं, सहाइँ मणिच्छियाइँ पूरंती । तेहिं वृत्ता वच्छे ! कहं तुहं इय वियाणेसि १ ॥ १०० ॥ पभणेइ पुप्फचूला, भयत्रं ! पगिईं तुमाण जाणेमि । जो जं खु सया सेवइ, सो जाणइ तरस सम्भावं ॥ १०१ ॥ कइया सा वरिसंते, घणेsसणं आणिऊण वियरंती । गुरुणा वृत्ता जाणं-तियावि किं वच्छि भुल्लेसि ॥ १०२ ॥ सा वि पर्यंपइ भयवं ! आकारण वज्जिए मग्गे । पिंडं आणंतीए, तुम्भं दोसो न को वि हवे ॥ १०३ ॥ अच्चित्तं पुण मग्गं, जाणेसि तुमं कहं ति
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वृत्तिः
॥६६॥