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________________ ते पुत्रनुं नाम नाथुमल यल्यु. अनुक्रमे आठवर्षनी ऊम्मरे पंडित प्रवर पू. पंन्यास श्री धीरविमलजीगणिवर्यनी पासे दीक्षा सं. १७०२ मां लीधी. ने दोक्षा बखते तेमनं नाम मनिश्री नयविमलजी राखवामां आव्यं. त्यारवाद केटलोक अभ्यास पोताना गुरुवर्य पासेकयों में विशेषत अभ्यास पंडित ममतविलजीगणिवर्य तथा कविराज मेकविमलजी गणिवर्य पासे करी न्याय सिद्धांत तर्क, काव्य, छंद विगेरेमां कुशल बन्या-ते वखते तपगच्छनी पाटे आचार्यश्री विजयप्रभसूरीजी विराजता हता. तेओए तेमनी क्रिया, अभ्यास विगेरेनी ऊज्वल किति सांभळी मने औदार्य गांभीर्यादि गुणोथी रजित थइने तेओनीना गुरुवर्यना अभिप्रायथी पंन्यासपदने योग्य जाणी संवत १७२७ ना महासदि दशमना मंगल प्रभाते सरीश्वरजीप पोताना वरद हस्ते घाणेरावनगरमा पंन्यासपदाबद्ध कर्या, त्यारवाद पोताना गुरुवर्यनी साथे अनेक जीवोने प्रतिबोध आपता विचरता हता तेटलार्मा गुरुदेवनो सं. १७३९ मा स्वर्गवास थयो. त्यारबाद क्रियोद्धार माटे श्री विजयप्रभसूरीश्वरजीनी आशा मागी त्यारे ज्ञानगंगाना बहावनार, सरस्वतीकंठाभरण अने महप्रभाविक जाणी सूरीजीए क्रियोद्धार माटे आशा आपी अने पंडित विभूषण पंन्यासश्री नयविमलजीगणिवयें सं. १७४७ ना फागणसुदि ५ मे पाटणा क्रियोद्धार कों ने श्री विजयप्रभसूरिजीनी आशाथी महिमासागरसूरीजीप पाटणपासे संडेर गाममा आदीश्वरभगवानना बहेरासरमा संवत १७४८ ना फागणसुदि पाचमे पूर्व सूरिप्रयुक्त आचार्थपदारुढ कर्या सकल संवेगी साधुओना नायक बनाव्या ने तेमन नाम श्रीमद शानविलसूरीश्वरजी राखवामां आव्यु. अनेक मुनिओने धर्म माग स्थिर करी तेज अरसामा धर्ममां स्थिर अने चुस्तवर्गने संविनपक्षिय प नामे प्रचलित करनार आ महापुरुष छे. आ आचार्य पदनो महोत्सव श्रेष्ठी नागजो पारेखे पोताना घणा धननो सदव्यय करी संदर कों हतो. सं. १७७७ नी सालमा सुरतमां चातुर्मास कयु. त्यां ऊक्तसूरीजीना उपदेशथी सुरतनिवासी श्रेष्ठवर्य प्रेमजी पारेखे तीर्थाधिराज श्री सिद्धगिरिनो अपूर्व संघ काल्यो तेमां ३५०००) पाश्रीस हजार यात्रालओ अने ३००)त्रणसो साधुसाध्वीओ हता, ऊक्तसूरीजीना शुभहस्ते सिध्धगिरि उपर तथा बीजे घणा स्थळे प्रतिष्ठाओ तथा अंजनसलाकाओ घणी था छ, अन्ते आ महापुरुष खंभातमा १७८२ चातुर्मास १. मणुंदरोड स्टेशनथी एक गाउ हे, आजे पण पारेख कुटुम्ब अने ते प्रासाद मोजुद छे.
SR No.600391
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanvimalsuri, Mafatlal Zaverchand Pt
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1939
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size24 MB
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