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________________ प्रश्न व्याक कर्यु ने ते दरमियान शरीर क्षीण थतां सं. १७८२ ना आसो वदि ना रोजे गुरुवारे वृद्धवये कालधर्म पाम्या. रिपुंगवना कालधर्मथी मांडीने ४०) चालीस दीवस सुधी अमारी पडह अने धर्म उत्सव सकळ संघे कॉं. तेमज तेमना स्मरणनिमित्ते सकरपरामां पगलायुक्त दहेरी करावी. जे दहेरी आजे पण विद्यमान छ भने तेममो संगृहित शानमंडार पण खारवाडाना । संवेगी-विमळगच्छीय उपाश्रयमा विद्यमान है. जे प्रश्नव्याकरण प्रन्थनी टीका करता अभयदेवसुरि महाराज शरुभातमा जणावे छ के अशा वयं शाखमिदं गभीरं, प्रायोऽस्य कटानि च पुस्तकानि सूत्र व्यवस्थाप्यमतो विमृश्य, व्याख्यानकल्पादित पप नैव ॥१॥ अने अन्ते जणावे छ के, पेरेषां दुर्लक्ष्या भवति हि विषक्षा स्फुटमिदं विशेषावृष्धानामतुलवचनज्ञानमहसाम् निरमायाधीभिः पुनरतितरां माशजनैः ततः शास्त्रार्थ मे वचनमनध दुर्लममिह ॥ अर्थात् आ प्रश्नव्याकरण शास्त्र कुट ग्रन्थ छे, मारा जेवार करेली व्याख्या उपर ध्यान न आपतां संबंध मेळवी व्याख्या करवी बगेरे जणावधूते प्रश्नव्याकरणनी महागंभीरता सबक. आ ग्रन्थना स्वपर शाखतत्वज्ञाता शासनसम्राट् तपागच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद पू.शानविमळसरीश्वरजी महाराजे अभयदेमरिनी टीकाने अनुलक्षी खुबज सरल बनाववा प्रयत्न कयों छे. ने जेमां ते खूबज सफळता पाम्या छे. तेमणे अभयदेवपरिनी टीकामां नहिं वृत्ति करायेल तेवा एकेक पदनी संस्कृत छाया अने पदेपदनी व्याख्या आपी छ, तदुपरांत तेमनीटीकार तेमना माननी गंभीरता अने बहुश्रुतता जणावे छे. तेमणे छेदप्रन्योथी मांडी जैन अने जैनेतरना अनेक प्रन्योना पुरावा अने साक्षिमीथी मा प्रथमें खुपज महत्त्वभयों बनाव्यो के. आ प्रथम प्रसंगने अनुसरीने अनेक अधिकारो आपी था प्राथने घणो | रसमय बनाष्यों छ, अर्थात् कुट गणाती आ प्रन्थ तेमनी तार्किक अने निपुण शक्तिथी सर्वजनभोग्य बनायो के..
SR No.600391
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanvimalsuri, Mafatlal Zaverchand Pt
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1939
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size24 MB
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