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________________ त्यारवाद मळ आगमनथों तेमज पूर्वमहर्षियोना प्रतिपादित करेल अन्थोना रहस्योने स्फुट करना विवरणोरूपले ग्रंथोना विवरणो अने विवरणसंप मिट मित्र सुंदा जुदा अनेक प्रयोनी रचनाद्वारा जैनशासक अधिच्छिा प्रभावशाळी आजसुधी वर्ते हे. आचरांग, सूपगडांग, ठाणांग, समवायांग, विवाहप्राप्ति (भगवतीजी) शाताधर्मकांग, उपासकवांग, अंतकृतवांग, अमुसरोपपातिकदशांग, प्रश्नव्याकरण अने विपाकसूच' अगिआर अंग छे. बार, अंग वीरसंवत १००० लगभग विच्छेद पाम्यु. सं. ९३३ मां सूरिपुंगव शीलांकाचार्य आचारांगसूत्र उपर तेमज वाहरिगणिनी सहायची सूपगडांग उपर संस्कृत भाषामा खबज चमत्कारिक वृत्तिओं रची छे. जे आजे उपलब्ध है. आबे अंग सिवाय बीजा नवे अंगो उपर पण तेज आचार्य पुंगवे होती. परंत उपरोकबे टीकामो सिवाय नवे टीकाओ विच्छेद पामयाधी आचार्य अभयवेवसूरि महाराजे 'शव मंगो उपर तद्दन नवी टीकाओ बनावी. ...... आ प्रश्नव्याकरण उपर आजे सुरम्य बे वृसिमो उपलब्ध छे. एक रिपुंगव अभयदेवरि महाराज रचित वृत्ति अने बीजी महान क्रियोद्धारक श्रीमद् शानविमळसूरि महाराजनी रचित वृत्ति छे. ते बन्ने वृत्तिकारोनो परिचय पण आवश्यक छे. जैनदर्शनमा महाप्रभावक ग्रंथकार तरीके अमथदेवसरिता नामघाळा पांच महापुरुषो थया छे. अभयदेवसरि (राजगच्छीय) १.प्रभावक चरित. अमयदेवसूरिप्रबंध श्लोक १००-१०५ तथा पुरातनप्रबंधसंग्रहे-अभयदेवत्रिविहरन् पल्यपुरे श्रीवर्समानसरिष दिवं गतेषु अमयदेवसूरीणां तत्रस्थितानां महादुर्भिक्षे सिद्धान्तास्तद्वृत्तयोऽपि त्रुटिताः, यदवस्थितं तदपि दुरवबोधत्वात् खिलं जातं शासनदेवी रात्रौ प्रभुं जगौ यदङ्गवर्य मुक्त्वा नवाशांनां वृत्तिं कुरु सरिराह-'सुधर्मस्वामीकृतसिद्धान्तविवरण कवि मन्दमतित्वात्सूत्रप्ररूपणावनम्तसंसारित्वम् । परं त्वायनुल्लायां करिष्यामि' देव्योक्तम्-यत्र यत्र सन्देशस्तत्राऽई स्मर्तव्या सीमधरस्वामिवावां सादाम कुर्चे प्रभुभिर्वन्यपूर्णतावधि यावदाचाम्लाभिप्रदोऽमाहि...इत्यादि. ..
SR No.600391
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanvimalsuri, Mafatlal Zaverchand Pt
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1939
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size24 MB
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