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________________ ४ा श्रीविशेषण वत्यां CHO जोअणसहस्समहिअं वणस्सइसरीरमाणमुद्दिटुं । तं च किर समुद्दगयं जलरुहनालं हवइ णणं ॥ ५ ॥ उस्सेहंगुलओ तं होइ गौतमद्वीपे शापमाणंगुलेण य समुद्दो । अवरोप्परओ दोण्णिवि कहमविरोहीणि होज्ज हुँ ॥६॥ पुढवीपरिणामाई ताई किर सिरिनिवासपउमं व जलावगा। तित्थेसु पुण वणस्सइपरिमाणाईपि होज्ज गणु ॥ ७॥ जत्थुस्सेहंगुलओ सहस्समवसेसएसु य जलेसु । वल्लीलयादओच्चिय || हादि | सहस्समायामओ होति ॥ ८॥२ ( ठा. २९५) पण्णत्तीए भणिया सोलसहस्सा सिहा समुदस्स । सच्चेव दीवसागरपण्णत्तीए सया सत्त ॥ ९॥ उस्सेहे सत्तसए गोअमदीवा-17 ६ दओ जलंताओ । उविद्धा जाबइअं तमेइ तेरासिएण फुडं ॥ १० ॥ उस्सेहे सोलसए गोयमदीवादओ निबुडिजा। तहवि अ ण सो ण सच्चो तं पइ बुडि भणियाई ॥११॥ किह पुण दोनिवि सच्चा जं सत्त सओवरिं समा चेव । निहाइ सोलससहस्सिया सिहा दस य विच्छिण्णा ॥१२॥ जीवाभिगमे वुड्डी जा सा तं पप्प खेत्तगणियं च । कण्णगईए णेयं लवणाभव्वस्स खेत्तस्स ६॥१३॥ जइ पंचणउइजोअणसहस्साई गंतूण सत्त जोअणसयाई उस्सेहं लब्भामो बारसजोयणसहस्से गंतूण गोयमदीवे किमुस्सेहं लब्भामो ?, आगतं अट्ठासीइ जोअणाई चत्तालीसं च पंचाणउइभागा जोअणस्स, एयं जंबुद्दीवंतेणं जले णिबुडं दीवस्स, उवरिपि एत्तिय चेव ऊसियं जलंताओ अद्धजोअणं च, चउवीस जोअणसहस्साई गंतूर्ण लद्धं छावंत्तरं जोअणसयं असीई च पंचाणउइभागा जोअणस्स, एयं लवणसमुद्देतेणं निबुडं दीवस्स, दो कोसे ऊसिओ जलंताओ, जीवाभिगमे पंचाणउइ पंचाणउइ अंगुलाई (१)णु उ (२) निवुइज्जा (३) बुद्धि० -CE R ECASCAR
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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