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श्रीविंशति-8 कज्जमफजं च उज्जुयं भणइ । तं तह आलोइज्जा मायामयविप्पमुक्को य॥११॥ पच्छित्तमयं करणा अन्ने सुद्धिं भणंति नाणस्स ।। १६ प्रायलतं च न जम्मा एवं ससल्लवणरोहणप्पायं ॥ १२ ॥ अवराहा खलु सल्लं एवं मायाइभेयओ तिविहं । सव्वंपि गुरुसमीवे उद्धरियच्च है
श्चित्त | पयत्तण ॥ १३ ॥ न य तं सत्थं च विसं व दुप्पउत्तुव्य कुणइ वेयालो । जंतव्य दुप्पउत्तं सत्तुव्व पमाइओ कुद्धो ॥ १४ ॥ जे कुणइ
विंशिका ॥१८॥
| भावसल्लं अणुद्धियं उत्तिमट्टकालाम्म । दुल्लहबोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च ॥१५॥ तो उद्धरति गारवरहिया मूलं पुणब्भवलयाणं । ५ | मिच्छदसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च ॥ १६ ॥ चरणपरिणामधम्मा दुच्चरियं अद्धिइं दढं कुणइ । कहवि पमायावट्टिय जाव न* | आलोइयं गुरुणो ॥ १७ ॥ जं जाहे आवज्जइ दुच्चरियं तं तहेव जत्तेणं । आलोएयव्वं खलु सम्म सइयारमरणभया ॥ १८ ॥ | एवमवि य पक्खाई जायइ आलोयणाओ विसओत्ति । गुरुकज्जाणालोयण भावाणाभोगओ चेव ॥ १९ ॥ जं जारिसेण भावेण | है| सेवियं किंपि इत्थ दुच्चरियं । तं तत्तो अहिगेणं संवेगेणं तहाऊलोए ।॥ २० ॥ इति आलोयणाविंशिका १५॥
पच्छित्ताओ सुद्धी तहभावालोयणेण जं होइ । इहरा ण पीढबंभाइओसआ सुकडभावेऽवि ॥१॥ अहिगा तक्खयभाव पच्छितं किंफलं इहं होइ? । तदहिगकम्मक्खयभावओ तहा हंत मुक्खफलं ॥२॥ पावं छिंदइ जम्हा पायच्छित्तंति भण्णए तम्हा । पाएण वावि है चित्तं सोहयई तेण पच्छित्तं ॥ ३ ॥ संकेसणाइभेया चित्तअसुद्धीइ बज्झई पावं । तिव्वं चित्तविवागं अवेइ तं चित्तसुद्धीओ ॥४॥
किच्चेवि कम्मणि तहा जोगसमत्तीइ भणियमेयंति । आलोयणाइभेया दसविहमेयं जहा सुत्ते ॥ ५॥आलोयण पडिकमणे मीस ४॥१८॥ विवेगे तहा विउस्सग्गे । तव छेय मूल अणवट्ठया य पारंचियं चेव ॥ ६॥ वसहीओ हत्थसया बाहिं कज्जे गधस्स विहिपुध्वं । | गमणाइगोयरा खलु मणिया आलोयणा गुरुणा ॥ ७॥ सहसच्चिय अस्समियाइमाचगमणे य चरणपरिणामा । मिच्छादुक्कड
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