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________________ समक्षा विधिः श्रीविंशति-13ापडिवत्तिविरहियाणं न हसयमित्समवयारगं होई। नो आउरस्स रोगो नासह. तह ओसहसइओ ॥ १२॥ नय विवरीएणसा काप्रकरणे किरियाजोतेण अविय बट्टेड । इय परिणामाओ खल सव्वं खुजहत्तमायरह ॥ १३ ॥ भेदोऽवित्थमजोगो नियमेण विवागदारुणा होइ । पागकिरियागओ जह नायमिणं सुप्पसिद्धं तु ॥ १४ ॥ जह आउरस्स रोगक्खयत्थिणो दुकरावि सुहहेऊ । इत्थ चिगिच्छाकिरिया तह चेव जइस्स सिक्खत्ति ॥ १५ ॥ जं सम्मनाणमेयस्स तत्तसंवेयणं निओगेण । अन्नेहिवि भणियमओ उ विज्जासविज्जपदमिसिणो ॥ १६॥ पढममहं पीईविऊ पच्छा भत्ती उ होइ एयस्स । आगममित्तं हेऊ तओ असंगत्तमेगंता ॥ १७ ॥ जइणो चउविहंचिय अन्नेहिवि वन्नियं अणुट्ठाणं । पीईभत्तिगयं खलु तहागमासंगमेयं च ॥ १८ ॥ आहारोवरि सिज्जासु संजओ होइ एस नियमेण । जायइ अणहो सम्म इत्तो य चरित्तकाउत्ति ॥ १९ ॥ एयासु अवत्तवओ जह चेव विरुद्धसेविणो देहो । पाउणइ न उणमेवं जइणोऽविहु धम्मदेहुत्ति ॥ २० ॥ इति शिक्षाविंशिका द्वादशमी १२॥ भिक्खाविही उ नेओ इमस्स एसो महाणुभावस्स । बायालदोसपरिसुद्धपिंडगगहणंति ते य इमे ॥ १॥ सोलस उग्गमदोसा सोलस उप्पायणाइ दोसा उ । दस एसणाइ दोसा बायालीसं इय हवंति ॥२॥ आहाकम्मुद्देसिय पूईकम्मे य मीसजाए य । ठवणा पाहुडियाए पाओयरकीयपामिच्चे ॥३॥ परियट्टिए अभिहडे उम्भिन्ने मालोहडे इय । आच्छिज्जे अनिसिढे अज्झोयरए य सोलसमे ॥४॥धाई दुइ निमित्ते आजीव वणीमगे तिगिच्छा य । कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस एए ॥ ५ ॥ पुविपच्छासंथव विज्जा मते य चुब जोगे य । उप्पायणाइ दोसा सोलसमे मूलकम्मे य ॥ ६ ॥ संकिय मक्खिय निक्खित्त पिहिय | ४ साहरिय दायगुम्मीसे । अपरिणय लित्त छड्डिय एसणदोसा दस हवंति ॥७॥ एयद्दोसविमुक्को जईण पिंडो जिणेणऽणुनाओ। ॥१५॥
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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